कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. डी. आर. सिंह के निर्देश के क्रम में तिलहन अनुभाग की अलसी अभिजनक डॉ. नलिनी तिवारी ने किसानों हेतु अलसी की खेती पर एडवाइजरी जारी की है। उन्होंने बताया कि तिलहनी फसलों में अलसी का महत्वपूर्ण स्थान है। उन्होंने बताया कि भारत में अलसी का क्षेत्रफल 1.8 लाख हेक्टेयर है एवं उत्पादकता 671 किलो प्रति हेक्टेयर है। भारत में अलसी की खेती मुख्य रूप से 95% मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, बिहार, झारखंड, नागालैंड और असम में होती है। उत्तर प्रदेश में अलसी का क्षेत्रफल 27 हजार हेक्टेयर एवं उत्पादन 19 हजार टन होता है।
उत्तर प्रदेश में अलसी की खेती जालौन, हमीरपुर, झांसी, ललितपुर, बांदा, चित्रकूट, कानपुर नगर, कानपुर देहात, गोरखपुर, बाराबंकी आदि जनपदों में होती है। बुंदेलखंड क्षेत्र में बुंदेलखंड क्षेत्र में बुवाई का उचित समय अक्टूबर का प्रथम पखवाड़ा एवं मैदानी क्षेत्रों में द्वितीय पखवाड़े तक होती है। कहीं-कहीं पर किसान धान की कटाई के उपरांत अलसी की छिटकवां खेती करते हैं। अलसी के बीज में तेल 35 से 45 %, कार्बोहाइड्रेट 29%, प्रोटीन 21%, खनिज 3%, ऊर्जा 530 कैलोरी, कैल्शियम 170 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम, लोहा 370 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम पाया जाता है।
पंक्ति में सभी अमीनो एसिड पाए जाते हैं इसमें ओमेगा-3 एवं ओमेगा-6 वसा अम्ल ही होते हैं। ओमेगा 3 कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करता है। जिससे हृदयाघात और गठिया से छुटकारा मिलता है। कुल तेल उत्पादन का 80% भाग औद्योगिक कार्यों जैसे पेंट, साबुन, वार्निश, छपाई आदि में प्रयोग की जाती है। डॉक्टर तिवारी ने बताया कि कुछ प्रजातियां भी उदेशी होती हैं जैसे शिखा, रश्मि, पार्वती, गौरव जिनसे तेल एवं रेशा निकलता है। रेशा से कपड़ा एवं सदस्य बनाई जाती जिससे किसान भाई अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।