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बैगन फसल में कीट नियंत्रण के लिए वितरित की गयी दवा

कानपुर नगर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बिजेंद्र सिंह के निर्देश के क्रम में सोमवार को कृषि विज्ञान केंद्र दिलीप नगर के प्रभारी डॉ. अजय कुमार सिंह ने किसानों को बैगन फसल में लगने वाले कीटों के नियंत्रण हेतु दवा का वितरण किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि बैंगन की फसल को तना और फल छेदक कीट (Leucinodes orbonalis) सबसे अधिक नुकसान पहुंचाता है। इस कीट के प्रकोप से उपज ही कम नहीं होती बल्कि ग्रसित फलों की गुणवत्ता कम होने से कृषकों को फसल का कम मूल्य मिलता है।

किसी भी कीट के प्रभावी नियंत्रण के लिए आवश्यक है कि हम उस कीट की प्रकृति, स्वभाव, पहिचान, जीवन चक्र के बारे में जानकारी रखें, तभी कीट का प्रभावकारी नियंत्रण किया जा सकता है।

तना एवं फल छेदक कीट के वयस्क मध्यम आकार के मौथ/पतंगें, जिसके अग्र पंख सफेद धब्बेदार होते हैं, इस कीट की इल्लियां/लार्वा नुकसान पहुंचाते हैं। फरवरी मार्च में कीट की वयस्क मादायें दूधिया रंग के अंडे एक-एक करके या समूह में पत्तियों की निचली सतह, तनों, फूलों की कलियां या फल के आधार पर देती हैं। 3-5 दिनों बाद अंडों से लार्वा निकलने के बाद तने व शाखाओं के अग्र भाग में घुस जाती है, जिस कारण तने/शाखाओं के अग्र भाग मुरझा कर लटक जाते हैं  व बाद में सूख जाते हैं। पौधों पर फल आने पर लार्वा /इल्लियां फलों में छेद बना कर अंदर प्रवेश कर अन्दर घुसते ही कीट छेदों को अपने मल मूत्र से बंद कर देते हैं। इल्लियां अंदर ही अंदर फल के गूदे को खाती रहती हैं। कीट द्वारा किए गए छिद्रों से फफूंद व जीवाणु फलों के अन्दर प्रवेश करते हैं जिससे बाद में फल सड़ने लगते हैं।

पूरी तरह विकसित लार्वा सुदृढ़, गुलाबी रंग और भूरे सिर वाला होता है जो तनों,सूखी टहनियों या जमीन पर गिरी पत्तियों पर प्यूपा बनता है। कीट की लार्वा अवस्था 12-15 दिनों की होती है। प्यूपा अवस्था 6-10 दिनों की होती है जिसके बाद वयस्क बनते हैं। वयस्क पतंगा 2-5 दिन जीवित रहता है। मौसम के अनुसार एक जीवन चक्र 21-43 दिनों में पूरा करता है। एक वर्ष के सक्रिय समय में इसकी पांच पीढि़यां तक हो सकती है। कृषि विज्ञान केंद्र कानपुर देहात द्वारा उक्त कीट के नियंत्रण हेतु प्रक्षेत्र परीक्षण अंतर्गत कृषि पद्धति क्लोरोपाइरीफास या इंडोक्साकार्ब या मैलाथियान एक चम्मच दवा का तीन लीटर पानी में घोल बनाकर पांच दिनों के अंतराल पर तीन छिड़काव के सापेक्ष किसान छिड़काव कर दें। जिससे फसल को कीड़ों से बचाया जा सकता है।

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