कानपुर। विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस के अवसर पर गुरुवार को विश्वविद्यालय परिसर की राष्ट्रीय सेवा योजना की डॉ. बी.सी. राय इकाई (पंचम इकाई) द्वारा एक स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रम कान्फ्रेंस हाल, स्कूल आफ होटल मैनेजमेंट में आयोजित किया गया। विश्वविद्यालय की राष्ट्रीय सेवा योजना के उप-समन्वयक डॉ. प्रवीन कटियार ने सभी का स्वागत किया।
इस कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में डॉ. मधुकर कटियार, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, मानसिक रोग विभाग, रामा मेडिकल कालेज, कानपुर एवं पूर्व प्रोफेसर, मानसिक रोग विभाग, किंग जार्ज मेडिकल मेडिकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ ने कहा कि विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस 2024 कार्यस्थल की स्थितियों और तनाव प्रबंधन से लेकर सामाजिक समावेश और सशक्तिकरण के महत्व तक, कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य के विभिन्न पहलुओं को उजागर कर रहा है। लक्ष्य स्पष्ट हैः कार्यस्थल में मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ावा देना और ऐसी सर्वाेत्तम प्रथाओं का निर्माण करना जो ऐसी संस्कृतियां बनाएं जहां श्रमिकों के पास उत्पादक रूप से योगदान करने और फलने-फूलने की क्षमता हो।
उन्होंने बताया कि हमें मानसिक स्वास्थ्य और रोजगार के बीच के संबंध पर अधिक जोर देने की जरूरत है और मानसिक बीमारी वाले व्यक्तियों को दिए जाने वाले उपचार के हिस्से के रूप में रोजगार सहायता के महत्व पर फिर से जोर देना चाहिए। गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्या वाले लोगों के बीच रोजगार की दर 10 प्रतिशत से 50 प्रतिशत तक बढ़ाने के लाभों की कल्पना करें- इससे समाज को लाभ होगा क्योंकि लोग राज्य के लाभों पर कम निर्भर होंगे और मानसिक स्वास्थ्य कठिनाई वाले लोगों के सामाजिक समावेशन को बढ़ाकर मानसिक स्वास्थ्य कलंक को कम करेंगे।
उन्होंने कहा कि वैश्विक समुदाय को यह सुनिश्चित करने के लिए तत्काल कार्य करने की आवश्यकता है कि कार्यस्थल एक स्वस्थ स्थान हो जहाँ लोगों का मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण पनप सके और नियोक्ताओं के लिए उत्पादकता बढ़ाई जा सके। इसका मतलब होगा असमानता और समानता के मुद्दों और लिंग, जाति और स्वास्थ्य संबंधी विकलांगता सहित रोजगार को संबोधित करना, साथ ही यह भी पहचानना कि घर तेजी से कार्यस्थल बन रहा है। उन्होंने जोर दिया कि मानसिक स्वास्थ्य और रोजगार महत्वपूर्ण हैं। मानसिक स्वास्थ्य और कार्यस्थल के बीच द्विदिश संबंध को समझना महत्वपूर्ण है। अस्वस्थ कार्य वातावरण में सबसे स्वस्थ कर्मचारी भी शारीरिक और मानसिक रूप से पीड़ित हो सकते हैं। कार्यस्थल पर मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता देना उत्पादक और सहायक माहौल को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है। जब नियोक्ता मानसिक स्वास्थ्य को सक्रिय रूप से संबोधित करते हैं, तो इसका परिणाम तनाव में कमी, अनुपस्थिति में कमी और कर्मचारी जुड़ाव में वृद्धि होता है। लचीले कार्य घंटों, मानसिक स्वास्थ्य संसाधनों तक पहुँच प्रदान करने और मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुली बातचीत को प्रोत्साहित करने जैसी नीतियों को लागू करके, कंपनियाँ देखभाल की संस्कृति विकसित कर सकती हैं जो मनोबल को बढ़ाती है और समग्र प्रदर्शन और नवाचार को बढ़ाती हैं। मानसिक स्वास्थ्य में निवेश करना सिर्फ करुणामय नहीं है, यह एक रणनीतिक व्यावसायिक निर्णय है जो सभी को लाभ पहुँचाता है।
द्वितीय वक्ता डॉ. नीरजा, सहायक आचार्य, स्त्री एवं प्रसूति रोग, रामा मेडिकल कालेज, कानपुर ने बताया कि सामान्य तौर पर, भले ही रोजगार सकारात्मक हो, कुछ कामकाजी पैटर्न स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकते हैं, जब वे लंबे समय तक काम करने, रात की शिफ्ट और सप्ताहांत में काम करने सहित तनाव को बढ़ाते हैं, जब पर्याप्त आराम अवधि नहीं होती है या हानिकारक पदार्थों के आसपास रहना पड़ता है। ऐसे तनाव बर्न-आउट और अन्य तनाव से संबंधित मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं, अनुपस्थिति और उपस्थिति, और व्यक्तिगत और सामाजिक लागत के साथ उत्पादकता में कमी से जुड़े होते हैं।
उन्होंने बताया कि महिला कर्मचारियों और नियोक्ताओं के लिए सभी चीजें बहुत कठिन हैं, जो हमारे देश में अभी भी है- 1. लिंग असमानता 2. यौन उत्पीड़न, शोषण और इशारे 3. पुरुष वर्चस्व और पितृसत्ता, 4. समान काम के लिए कम वेतन 5. रात में काम करने पर प्रतिबंध और संबंधित सुरक्षा मुद्दे और 6. महिलाओं के लिए अलग से सुरक्षित और विशिष्ट सुविधाओं का अभाव।
कार्यक्रम में विद्यार्थियों ने मुख्य वक्ता से प्रश्न भी पूछे। धन्यवाद ज्ञापन विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय सेवा योजना की उप-समन्वयक डॉ0 पुष्पा ममोरिया ने किया। इस अवसर पर राष्ट्रीय सेवा योजना पंचम इकाई के स्वयंसेवक एवं अन्य विद्यार्थीगण उपस्थित रहे।