कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. डी.आर. सिंह के निर्देश के क्रम में शनिवार को क्षेत्रीय कृषि अनुसंधान केंद्र दिलीप नगर के वैज्ञानिक डॉक्टर भानु प्रताप सिंह ने किसानों को सलाह दी है कि धान की कटाई उपरांत पराली न जलाएं बल्कि मृदा में पराली को सड़ा गला कर मृदा की उर्वरता बढ़ाएं। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक किसानों को पराली जलाने के बारे में लगातार एवं गांव-गांव में जाकर जानकारी दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि मशीनों के प्रबंधन से इस पराली को जमीन के अंदर मिलाकर कार्बन की मात्रा बढ़ाने के साथ ही जल संरक्षण की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।
किसानों को जागरूक करने के लिए उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा की 63 जिलों में वैज्ञानिक इस पर जोर शोर से काम कर रहे हैं। डॉक्टर सिंह ने कहा कि भारतवर्ष में गेहूं के अंतर्गत 29.14 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल है तथा धान में 43. 79 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल है। उन्होंने बताया कि पराली को जमीन में सड़ा गला दिया जाए तो एक खाद का काम करेगी तथा जमीन की जल धारण क्षमता भी बढ़ेगी जमीन में नत्रजन की मात्रा बढ़ेगी। प्रदूषण कम होगा फिर खरपतवार भी नियंत्रण होगा। पैदावार की लागत घटेगी व पैदावार बढ़ेगी। ग्रीन हाउस गैसेस का उत्सर्जन भी कम होगा।
इस अवसर पर डॉ. अनिल कुमार ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण कई प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा है उन्होंने बताया कि हैप्पी सीडर,सुपर सीडर, मल्चर बेलर, चापा इत्यादि मशीनों के माध्यम से फसल अवशेष प्रबंधन करके जमीन की उत्पादन क्षमता बढ़ाई जा सकती है। डॉक्टर कुमार ने बताया कि 25 प्रकार के मशरूम का उत्पादन धान के तना के माध्यम से करके किसान धन अर्जित कर सकते हैं। उन्होंने यह भी बताया कि धान के भूसे को पशुओं के चारा के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है तथा अन्य चारों के साथ इसको प्रयोग में लाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि फसल अवशेष प्रबंधन के लिए विभिन्न प्रकार की मशीनों का उन्होंने सुझाव दिया।