कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डी.आर. सिंह के निर्देश के क्रम में आज 14 फरवरी 2021 को कल्याणपुर स्थित सब्जी अनुभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ राम बटुक सिंह ने किसानों हेतु प्याज की उन्नत तकनीक विषय पर एडवाइजरी जारी की है। उन्होंने बताया कि प्याज की खेती रवी एवं खरीफ दोनों मौसम में की जाती है। उन्होंने बताया कि दैनिक जीवन में रोजमर्रा की प्याज खाने की आवश्यक खाद्य है उन्होंने कहा कि प्याज महत्वपूर्ण व्यवसायिक फसल है। भारत के प्याज की मांग विदेशों में भी अच्छी है। इसलिए हमारा देश प्याज का प्रमुख निर्यातक देश है। इसका महत्व आहार के रूप में तो है ही लेकिन प्याज का औषधियों के रूप में भी महत्वपूर्ण स्थान है, जैसे पीलिया, कब्ज, बवासीर और यकृत संबंधी रोगों में बहुत लाभकारी पाया गया है।
डॉ सिंह ने बताया कि किसानों को प्याज की उन्नत तकनीक और उन्नत किस्मों की जानकारी आवश्यक है प्याज के कंदो के विकास के लिए 20 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान आवश्यक है। उन्होंने प्याज की उन्नत किस्मों के बारे में बताया कि सफेद रंग वाली किस्मे भीमा शुभरा, भीमा श्वेता, नासिक सफेद, पूसा व्हाइट राउंड जबकि लाल रंग की किस्में भीमा लाल, भीमा सुपर,कल्याणपुर लाल,अर्का प्रगति इत्यादि है। उन्होंने बताया कि प्याज की फसल में नाइट्रोजन 100 से 120 किलोग्राम, फास्फोरस 50 से 60 किलोग्राम, पोटाश 60 से 70 किलोग्राम एवं सल्फर 30 से 35 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना आवश्यक है। उन्होंने बताया कि प्याज की रोपाई का उत्तम समय फरवरी अंतिम सप्ताह तक है।
डॉ सिंह ने बताया कि कतारों से कतारों की दूरी 15 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर पर पौधों की रोपाई करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि रोपाई से पूर्व पौधों की जड़ों को 0.1% कार्बेंडाजिम + 0.1% मोनोक्रोटोफॉस के घोल में डुबोकर रोपाई करने से पौधे स्वस्थ रहते हैं उन्होंने कहा कि यदि किसान तकनीकी विधियों का प्रयोग करते हुए प्याज की खेती करते हैं तो प्याज की उपज 350 से 450 कुंतल प्रति हेक्टेयर प्याज के कंदों की पैदावार होगी।