कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के सस्य विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डॉ. संजीव कुमार ने बताया कि अब किसान कम पानी में भी धान की अधिक पैदावार कर सकेंगे। उन्होंने बताया कि उनके निर्देशन में पिछले 2 वर्षों से शोध कार्य कर रहे शोध छात्र रामनरेश ने धान की फसल में दो सिंचाई पद्धति, बाढ़ सिंचाई और वैकल्पिक गीला एवं सुखाने वाली सिंचाई पर परीक्षण किए हैं। शोधों द्वारा पाया गया है कि वैकल्पिक गीला एवं सुखाने वाली सिंचाई पद्धति से एक पानी की बचत हो जाती है। उन्होंने बताया कि नई तकनीक से धान की फसल के लिए पानी की आवश्यकता में 40 से 50 फीसदी तक कम करने में मदद मिलेगी। यह भी ज्ञात हुआ है कि धान के खेत में स्थिर पानी की जरूरत नहीं होती है।
उन्होंने कहा कि अच्छे प्रबंधन से 4- 5 टन धान प्रति हेक्टेयर उत्पादन हो सकता है। बाढ़ सिंचाई पद्धति में 1 किलोग्राम धान उत्पादन में सामान्यतः 4000 से 5000 लीटर पानी की आवश्यकता होती है। उन्होंने बताया कि धान की खेती में पानी का इस्तेमाल अगर वैश्विक स्तर पर 10 फीसदी कम कर दिया जाए तो गैर कृषि जरूरतों के लिए 150 अरब क्यूबिक मीटर पानी उपलब्ध हो सकता है।
डॉ. कुमार ने बताया कि नई सिंचाई पद्धति में गीला एवं सुखाने वाली सिंचाई से आर्सेनिक, सीसा और कैडमियम के स्तर को क्रमश: 66,73 और 33% कम कर सकता है। उन्होंने बताया कि इस विधि से रोग एवं कीटों का प्रकोप कम होता है क्योंकि बीच-बीच में मृदा सूखती है, जिससे मृदा जनित रोगाणु नष्ट हो जाते हैं।इस विधि द्वारा मीथेन उत्सर्जन को 85% कम पाया गया साथ ही पंपिंग लागत एवं ईंधन पर होने वाले व्यय में कमी आई है। यह विधि किसानों के लिए धान उत्पादन के क्षेत्र में जहां पर पानी की कमी है काफी लाभकारी जीत होगी।