कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के कल्याणपुर स्थित सब्जी अनुभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. आई. एन. शुक्ला ने खरीफ में लौकी की वैज्ञानिक खेती विषय पर किसानों हेतु एडवाइजरी जारी की है। डॉक्टर शुक्ला ने बताया कि लौकी कद्दू वर्गीय महत्वपूर्ण सब्जी है। लौकी को विभिन्न प्रकार के व्यंजन जैसे रायता, कोफ्ता, हलवा, खीर इत्यादि बनाने के लिए प्रयोग करते हैं। उन्होंने कहा कि औषधि की दृष्टि से भी यह अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह कब्ज को कम करने, पेट को साफ करने,खांसी या बलगम दूर करने में अत्यंत लाभकारी है। इसके मुलायम फलों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, खाद्य रेशा, खनिज लवण के अलावा प्रचुर मात्रा में अनेकों विटामिन पाए जाते हैं। डॉक्टर शुक्ला ने बताया कि इसकी खेती पहाड़ी क्षेत्रों से लेकर दक्षिण भारत के राज्यों तक विस्तृत रूप में की जाती है। निर्यात की दृष्टि से सब्जियों में लौकी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
उन्होंने बताया की लौकी के बीज के अंकुरण के लिए 30-35 डिग्री सेंटीग्रेड और पौधों की बढ़वार के लिए 32 से 38 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की आवश्यकता होती है। किसानों को सलाह दी है, लौकी की खेती के लिए बलुई दोमट तथा जीवांश युक्त चिकनी मिट्टी जिस का पीएच मान 6-7 हो सर्वोत्तम होती है। उन्होंने बताया कि लौकी की बुवाई का सर्वोत्तम समय 20 जून से 20 जुलाई तक सर्वोत्तम है। इस की उन्नतशील प्रजातियां जैसे काशी गंगा, काशी बहार, आर्का बहार, पूसा नवीन, पूसा संदेश, नरेंद्र रश्मि प्रमुख उन्नतशील प्रजातियां है। उन्होंने बताया कि लौकी का बीज 2.5 से 3 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की आवश्यकता होती है। डॉ. शुक्ला ने बताया कि लौकी से अच्छी पैदावार लेने के लिए 50 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 किलोग्राम फास्फोरस तथा 35 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है। एक स्थान पर दो-तीन बीज 4 सेंटीमीटर गहराई पर बुवाई करना चाहिए। डॉ शुक्ला ने बताया यदि किसान वैज्ञानिक विधि से लौकी की खेती करते हैं, तो 400 से 450 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होगी। जो लाभ एवं आय की दृष्टि से अच्छी है।