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जौ की करें वैज्ञानिक खेती, होगा अधिक लाभ : डॉ. पी. के. गुप्ता

कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के जौ अभिजनक डॉक्टर पी.के. गुप्ता ने बताया कि उत्तर प्रदेश में 1.64 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल पर जौ की खेती की जाती है। जिसकी उत्पादकता 29.56 कुंतल प्रति हेक्टेयर तथा उत्पादन 4.84 लाख मैट्रिक टन है। डॉ. गुप्ता ने बताया कि जौ एक ऐसी फसल है। जिसे कम लागत तथा कम मेहनत कम पानी,कम उपजाऊ भूमि/ऊसर भूमि भी आसानी से उगाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि यह अनाज नहीं बल्कि औषधि है। जौ में 10 से 12 % प्रोटीन, 2 से 3% वसा तथा 70 से 72% कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है। इसके अतिरिक्त जौ में 3 से 5% तक घुलनशील रेशा (बीटा ग्लूकॉन) पाया जाता है। जो कि रक्त के कोलेस्ट्रॉल एवं शर्करा की मात्रा को नियंत्रित करने में सहायक होता है। उन्होंने बताया की भारत में जौ के उत्पादन का 20 से 25% भाग माल्ट बनाने तथा शेष जानवरों के खाने, सत्तू, सूजी, आटा, शिशु आहार एवं शक्तिवर्धक पेय आदि  में प्रयोग होता है। जौ में विटामिन एवं खनिज लवण प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं जो अनावश्यक टॉक्सिन को शरीर से बाहर निकालने में मदद करते हैं। 

डॉ. गुप्ता ने  बताया कि जौ की खेती वर्षा आधारित असिंचित एवं सिंचित दशाओं में की जाती है। जौ की फसल 8.5 पीएच तक की भूमि में अच्छी उपज देती है। जौ की खेती के लिए बलुई से मध्यम भार वाली दोमट मिट्टी श्रेष्ठ होती है। उन्होंने किसानों को सलाह देते हुए बताया कि पलेवा करने के उपरांत ओट आने पर खेत की 2-3 जुताई कल्टीवेटर से करने के उपरांत खेत को बुवाई हेतु तैयार कर लें। उन्होंने बताया कि असिंचित दशा में जौ की बुवाई हेतु उचित समय 25 अक्टूबर से 10 नवंबर उचित रहता है तथा सिंचित दशा में 10 नवंबर से 25 नवंबर उचित रहता है। बुवाई के पूर्व किसान आवृत  एवं अनावृत कंडवा से बचाव के लिए बीज शोधन अवश्य करें। इसके लिए बावस्तीन तथा बीटावैक्स को 1:1 में मिलाकर 2.5 ग्राम दवा को प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित करें। उन्होंने किसानों को यह भी सलाह दी है कि किसान बुवाई हमेशा लाइन में करें तथा लाइन से लाइन की दूरी 23 सेंटीमीटर तथा गहराई 5 से 7 सेंटीमीटर तक है। 

उन्होंने कहा की रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग हमेशा मिट्टी की जांच रिपोर्ट के अनुसार करें। संस्तुति दरों के आधार पर असिंचित दशा में नाइट्रोजन फास्फोरस: पोटाश की 30:30:20 किलो मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। तथा सिंचित दशा में नाइट्रोजन: फास्फोरस:पोटाश 60:30:20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय तथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा 20 से 25 दिन बाद पहली सिंचाई के बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में प्रयोग करें। असिंचित दशा में बुवाई के लिए हरीतिमा (के 560) अथवा नर्मदा( के 603) का प्रयोग करें। सिंचित दशा में नई प्रजातियां जैसे प्रखर (के 1055)एवं प्रगति (के 508) का प्रयोग करें। तथा माल्ट हेतु ऋतंभरा (के 551) का प्रयोग करें। ऊसर भूमि यों के लिए के बी 1425     (आज़ाद जौं-33), नरेंद्र जौं-1, आजाद, नरेंद्र जौं-3, एवं आरडी 2794 आदि का प्रयोग कर सकते हैं। छिलका रहित प्रजाति के 1149 (गीतांजलि) विकसित की गयी हैं। बीज की मात्रा 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा उसर भूमियों के लिए 125 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज का प्रयोग करें।

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