कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डी. आर. सिंह द्वारा जारी निर्देश के क्रम में आज दलीप नगर स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के उद्यान वैज्ञानिक डॉ. अरुण कुमार सिंह ने अमरूद की वैज्ञानिक खेती के बारे में विस्तार से जानकारी दी है। उन्होंने बताया कि अमरूद का फल वृक्षों की बागवानी में महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी उपयोगिता एवं पौष्टिकता को ध्यान में रखते हुए इसे गरीबों का सेव भी कहते हैं। यह स्वास्थ्य की दृष्टि से अत्यंत लाभदायक है। डॉ. सिंह ने बताया कि इसमें विटामिन सी संतरा से 4 से 5 गुना अधिक पाई जाती है। इसके अतिरिक्त विटामिन ए तथा विटामिन बी भी पाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि इसमें लोहा, चूना तथा फास्फोरस अच्छी मात्रा में होते हैं। अमरूद की जेली तथा बर्फी भी बनाई जाती है। इसे डिब्बों में बंद करके सुरक्षित रख लिया जाता है।
डॉ. सिंह ने कहा कि यह समय (मई-जून) अमरूद के नए बाग लगाने का उपयुक्त समय है। अमरूद के लिए बलुई दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। अमरूद के नए पौधे लगाने के लिए 6×6 मीटर की दूरी पर 1×1×1 मीटर आकार के गड्ढे बना देना चाहिए। गड्ढों की खुदाई के उपरांत एक सप्ताह तक खुला छोड़ देना चाहिए।तत्पश्चात 30 से 35 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद, 250 ग्राम पोटाश तथा दीमक की रोकथाम के लिए क्लोरपीरिफॉस की दवा को मिलाकर गड्ढों में डाल देना चाहिए। डॉ. सिंह ने बताया कि इन गड्ढों में जुलाई-अगस्त के महीने में अमरूद की उन्नत किस्में जैसे इलाहाबादी सफेदा, सरदार 49 लखनऊ श्वेता, ललिता, सेब नुमा अमरूद, इलाहाबादी सुर्खा, चित्तीदार, नासिक धारदार इत्यादि उन्नतशील प्रजातियों का चयन करके गड्ढों में रोपड़ कर देना चाहिए। इसके बाद हल्की सिंचाई कर दें। उन्होंने बताया कि अमरूद के पौधों को प्रथम वर्ष 10 किलोग्राम गोबर की खाद,75 ग्राम नाइट्रोजन, 65 ग्राम फास्फोरस और 50 ग्राम पोटाश प्रति एकड़ प्रतिवर्ष के हिसाब से 6 वर्ष तक बढ़ा कर देना चाहिए। जिससे पौधों की वृद्धि एवं फलों की गुणवत्ता अच्छी बनी रहती है। डॉ. सिंह ने सलाह दी है कि उद्यान विभाग से बाग लगाने के लिए अनुदान भी मिलता है इसके लिए जिला उद्यान अधिकारी के कार्यालय से संपर्क कर सकते हैं।