कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति डॉक्टर डी.आर.सिंह के निर्देश के क्रम में कीट विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. वाई. पी. मलिक ने किसानों हेतु धान की फसल में संस्तुत कीटनाशकों का ही प्रयोग करें। उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय वनस्पति स्वास्थ्य प्रबंधन संस्थान, हैदराबाद द्वारा कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग पर अध्ययन वर्ष 2017-2020 तक देश के सात कृषि विश्वविद्यालयों में विभिन्न फसलों पर किया गया। डॉक्टर मलिक ने बताया कि कृषि विश्वविद्यालय कानपुर में धान- पत्ता गोभी फसल चक्र में शोध किया गया था। डॉक्टर मलिक ने बताया कि अध्ययन में पाया गया कि कानपुर व आसपास के किसान भाई धान की फसल में घुलनशील सल्फर 80% डब्ल्यूपी तथा प्रोफेनोफॉस 40% + साइफरमैथ्रीन 4% ईसी कीटनाशकों का प्रयोग रोग एवं कीट प्रबंधन हेतु किया जा रहा है। जबकि पत्ता गोभी में क्लोरपीरिफॉस(20% ई. सी., 35% ई. सी., 50%ई. सी), डाईमेथोएट (30% ई सी), मोनोक्रोटोफॉस(36%एस एल), इमिडाक्लोप्रिड(17.8%एस एल), डाई क्लोरोवास( 76%ई सी),प्रोफेनोफास(40%)+साइपरमैथरीन(4%ईसी) का इस्तेमाल किसान कर रहे हैं। डॉक्टर मलिक ने कहा है कि इन कीटनाशकों के प्रयोग की सलाह न तो कृषि विश्वविद्यालय कानपुर द्वारा और न ही केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड, फरीदाबाद द्वारा दी गई है।
उन्होंने किसानों से कहा है कि इन कीटनाशकों का प्रयोग फसलों पर न करें। डॉक्टर वाई पी मलिक ने सलाह दी है कि इस समय धान की फसल में प्रमुख रूप से तनभेदक, पत्ती लपेटक, हरा फुदका, गालमिज़, गंधी कीट, थ्रिप्स इत्यादि कीटों के प्रकोप की प्रबल संभावनाएं हैं। इन कीटों के प्रबंधन के लिए एण्सीफेट 75% एसपी, कार्टेप, हाइड्रोक्लोराइड 4% जी,क्लोरेनटानीलीप्रोल 18.5% एसपी,फिप्रोनिल 5% एसपी,लैम्बडासिलोथरीन 5% एसपी, क्लोरपीरिफॉस 20% ईसी का छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर कीटों के आर्थिक हानि स्तर तक किया जा सकता है। सावधानी के तौर पर एक ही कीटनाशक का लगातार प्रयोग न करें तथा कीटनाशकों के संस्तुत मात्रा का ही प्रयोग करें। उन्होंने कहा कि कीटनाशकों के असंतुलित प्रयोग से फसल में कीटनाशक अवशेष तथा पर्यावरण असंतुलन की संभावना बढ़ जाती है।