कानपुर नगर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में चल रही चार दिवसीय उद्यानिकी फसलों एवं जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन रविवार को तकनीकी सत्रों में वैज्ञानिकों ने अपने शोध पत्रों का प्रस्तुतीकरण किया।
केंद्रीय उपोष्ण संस्थान संस्थान रहमान खेड़ा लखनऊ के प्रधान वैज्ञानिक डॉक्टर आर. ए. राम ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को जैविक खेती विधि अपनाकर कम किया जा सकता है। उन्होंने अपने शोध में बताया कि यदि मृदा उपजाऊ होती है तो वर्षा जल संचयन अधिक होता है और इस विधि द्वारा एक ही खेत में तीन से चार फसलें 1 वर्ष में ले सकते हैं। उन्होंने बताया कि रासायनिक उर्वरकों के पोषक तत्वों का 25% हिस्सा ही पौधे ले पाते हैं बाकी की हानि होती है। जलवायु परिवर्तन के लिए कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्रस ऑक्साइड एवं मिथेन गैस जिम्मेदार हैं। उन्होंने बताया कि प्रदेश में केवल 5 से 6% ही जंगल हैं यदि 25% जंगल कुल भाग में हों तो पर्यावरण संतुलित रहेगा। इसके लिए उन्होंने सलाह दी है कि खेतों की मेड़ों पर नीम एवं फलदार पौधों का वृक्षारोपण किया जाए। जिससे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी आएगी और जैव विविधता बढ़ेगी साथ ही गुणवत्ता युक्त उत्पाद प्राप्त होगा।
प्याज एवं लहसुन अनुसंधान निदेशालय पुणे के निदेशक डॉक्टर मेजर सिंह ने बताया कि प्याज की खपत पूरे वर्ष होती है। उन्होंने कहा कि 20% ब्याज खरीफ में 20% देर खरीफ में एवं 60% रबी में उत्पादन होता है।उन्होंने बताया कि प्याज भंडारण के लिए 27 डिग्री सेल्सियस तापमान के साथ ही भंडार गृह हवादार होना आवश्यक है। डॉ. सिंह ने बताया कि देश में 260 मिलियन टन प्याज का उत्पादन होता है। यदि इसकी हानियों को रोक लिया जाए तो 10 हजार करोड रुपए बचत होगी। संगोष्ठी में लीड, मौखिक एवं पोस्टर इत्यादि विधि द्वारा वैज्ञानिकों ने अपने शोध पत्रों का प्रस्तुतीकरण किया।
चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डी. आर. सिंह एवं पूर्व महानिदेशक उद्यान आईसीएआर डॉक्टर एच. पी. सिंह द्वारा सभी शोधों के प्रस्तुतीकरण का अवलोकन भी किया गया। संगोष्ठी सचिव डॉ. करम हुसैन ने बताया कि देश के कई राज्यों से आए वैज्ञानिकों ने आज 60 से अधिक शोध पत्रों का प्रस्तुतीकरण किया।