कानपुर नगर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. डी.आर. सिंह ने विश्वविद्यालय के सभी वैज्ञानिकों को जारी निर्देश के क्रम में विश्वविद्यालय के दलहन वैज्ञानिक डॉ. मनोज कटियार ने कहा है कि ग्रीष्मकालीन मूंग का क्षेत्रफल उत्तर प्रदेश में लगभग 42000 हेक्टेयर क्षेत्रफल है। जबकि कानपुर मंडल में ग्रीष्मकालीन मूंग का क्षेत्रफल लगभग 10829 हेक्टेयर क्षेत्रफल है। उन्होंने कहा, ग्रीष्मकालीन मूंग की बुवाई किसान कर चुके हैं। अब ग्रीष्मकालीन मूंग का प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है। ग्रीष्मकालीन मूंग में सबसे महत्वपूर्ण जल प्रबंधन एवं सिंचाई व्यवस्था होती है।
डॉक्टर कटियार ने कहा कि किसान मूंग की फसल में पहली सिंचाई बुवाई के 20 दिन पर ही करें अथवा तापमान के बढ़ने पर जरूरत के अनुसार सिंचाई किसान भाई पहले भी कर सकते हैं। प्रथम सिंचाई के बाद आवश्यकता अनुसार 10 से 12 दिनों के अंतराल पर किसान मूंग की फसल में सिंचाई अवश्य करते रहें। गर्मी की मूंग की फसल में कुल सिंचाई तीन से चार की आवश्यकता होती है। किसान यह बात याद रखें कि शाम के समय जब हवा न चल रही हो तब सिंचाई करना चाहिए।
उन्होंने किसानों को सलाह दी है कि मूंग की फसल में कीट नियंत्रण के लिए किसान डाईमेथॉट 1000 मिली लीटर प्रति 600 लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल प्रति 600 लीटर पानी में 125 मिलीलीटर के हिसाब से छिड़काव करें। उन्होंने बताया कि गर्मी की मूंग 60 से 65 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है फसल कटाई या फलियों की तुड़ाई के 5 दिन पहले सिंचाई देना अवश्य बंद कर दें। विश्वविद्यालय के डॉ. खलील खान ने सलाह दी है कि मूंग की कटाई की अपेक्षा फलियों की तुड़ाई करना ज्यादा हितकारी होगा क्योंकि फली तोड़ने के बाद फसल को खेत में ही रोटावेटर की सहायता से पलटने पर हरी खाद का काम करेगी तथा मृदा की उपजाऊ शक्ति में बढ़ोतरी होगी।