कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डी.आर. सिंह के निर्देश के क्रम में आज कीट विज्ञान विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ राम सिंह उमराव ने चने की फसल में कीट प्रबंधन विषय पर किसानों हेतु एडवाइजरी जारी की है। उन्होंने बताया कि चने का महत्व एक अच्छी आमदनी वाली फसल के रूप में उभर कर सामने आया है। उन्होंने बताया कि भारत विश्व का सबसे अधिक चना (लगभग 75%) उत्पादन करने वाला देश है। सारे भारत का लगभग तीन चौथाई उत्पादन उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं राजस्थान में होता है।
डॉक्टर उमराव ने बताया कि चने की इल्ली या फली छेदक एक बहुभक्षी कीट है। यह दलहनी फसलों के अतिरिक्त अन्य फसलों को भी नुकसान पहुंचाती है। उन्होंने बताया कि इस कीट के प्रकोप से सामान्यतः 15 से 20% घेटियाँ/ फलियां प्रभावित होती हैं परंतु अधिक प्रकोप होने पर 80% तक घेटियाँ/फलियां क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। उन्होंने बताया कि छोटी इल्ली पतियों के पर्णहरित (क्लोरोफिल) को खाती हैं। कीट बड़ा होने पर यह घेटी/ फली के अंदर प्रवेश कर विकसित हो रहे दानों को खाती हैं। उन्होंने बताया कि यह कीट एक घेंटी/ फली के दानों को खाने के बाद दूसरे घेंटी/ फली पर आक्रमण करती है।
डॉ उमराव ने फली छेदक कीट की निगरानी हेतु बताया कि 2 फेरोमोन ट्रैप प्रति एकड़ प्रयोग करना चाहिए।तथा रासायनिक उपचार हेतु किसान भाई 400 मिलीलीटर कुएनॉलफोस 25 ईसी डेढ़ सौ लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ छिड़काव कर दें। तथा यदि आवश्यकता हो तो 15 दिन के अंतराल पर दूसरा छिड़काव अवश्य कर दें। जिससे फली छेदक कीट से चने की फसल को बचाया जा सके।