कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ.डी.आर.सिंह द्वारा जारी निर्देश के क्रम में विश्वविद्यालय के मक्का वैज्ञानिक डॉ. हरीश चंद्र सिंह ने बताया कि खरीफ मक्का एक उपयोगी फसल है। इसमें कार्बोहाइड्रेट 70%, प्रोटीन 10% पाया जाता है, जिसके कारण इसका उपयोग मनुष्यों के साथ-साथ पशुओं के आहार के रूप में भी किया जाता है। उन्होंने कहा कि अगर औद्योगिक दृष्टि से बात करें, तो इसका प्रयोग मुर्गी दाना के रूप में भी किया जाता है। उन्होंने कहा जुलाई-अगस्त माह में मक्का की फसल का प्रबंधन अत्यंत महत्वपूर्ण है, इसमें तना छेदक कीट,तना व पत्तियों तथा भुट्टो को नुकसान पहुंचाता है। इसके नियंत्रण के लिए क्लोरपायरीफास 20 प्रतिशत 1.5 लीटर दवा को 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए। इसी तरह से मक्का में पत्ती लपेटक कीट की भी रोकथाम करते हैं।
डॉ. सिंह ने बताया कि मक्का में सुंडी व टिड्डियों के प्रबंधन हेतु कार्बारिल 50 डब्ल्यूपी प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव कर दें अथवा मैलाथियान 5% धूल 10 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव कर दें। डॉ सिंह ने बताया कि मक्का की फसल में उर्वरक प्रबंधन के लिए जुलाई-अगस्त माह में नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर 40 किलोग्राम (87 किलोग्राम यूरिया) की दूसरी व अंतिम टॉप ड्रेसिंग बुवाई के 45 से 50 दिन बाद नर मंजरी निकलते समय करनी चाहिए। उन्होंने अपील की है कि ध्यान रखें कि खेत में उर्वरक प्रयोग करते समय पर्याप्त नमी रहे।