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फसलों की बढवार के लिए एवं अच्छी उपज के लिए जिंक (जस्ते) आवश्यक तत्व : डॉ खलील खान

 कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के मीडिया प्रभारी एवं मृदा वैज्ञानिक डॉ खलील खान ने बताया कि पौधों में जिंक (जस्ते) सभी फसलों की बढवार के लिए एवं अच्छी उपज के लिए आवश्यक होती है। यह पोषक तत्व पौधे भूमि (मिट्टी) से प्राप्त करते हैं लगातार फसल उत्पादन करने से इन पोषक तत्वों की मिट्टी में कमी हो जाती है। जिनकी पूर्ति के लिए किसान खाद का ही प्रयोग करते हैं। जिंक जिसे आम भाषा में जस्ता कहते हैं फसलों के लिए आवस्यक होता है। यह सूक्ष्म पोषक तत्व की श्रेणी में आता है। डॉक्टर खान ने बताया कि दलहनी फसलों में जिंक की कमी के कारण प्रोटीन संचय की दर कम हो जाती है। पौधों के लिए जिंक मृदा से अवशोषण द्वारा प्राप्त होता है। सामन्यत: पौधों में जिंक की आदर्श मात्रा 20 मि.ग्रा. प्रति किलोग्राम शुष्क पदार्थ तक उपयुक्त मानी जाती है। पौधों के माध्यम से खाध पदार्थों में जिंक का संचय होता है। पौधों में जिंक की कमी  के लक्षण पौधों की माध्यम पत्तियों पर आते हैं | जिंक की अधिक कमी से नई पत्तियां उजली निकलती हैं। पत्तियों की शिराओं के मध्य सफेद धब्बे में दिखाई देते हैं। मक्का में जिंक की कमी से सफेद कली रोग उत्पन्न होता है | अन्य फसलों जैसे नींबू की वामन पत्ती, आडू का रोजेट और धान में खैरा रोग उत्पन्न होता है। जस्ता की कमी से तने की लम्बाई में कमी (गाँठो के मध्य भाग का छोटा होना) आ जाती है। बालियाँ देर से निकलती है और फसल पकने में विलम्ब होता है। तने की लम्बाई घट जाती है और पत्तियाँ मुड़ जाती है। मृदा में जिंक उपलब्धता को प्रभावित करने वाले कारक मृदा पी–एच मान जैस –जैसे बढ़ता है वैसे–वैसे पौधों के लिए जिंक की उपलब्धता में कमी आती है। जिंक इन कार्बनिक पदार्थों के साथ चिलेट जिंक यौगिक का निर्माण करता है, जो पौधों को आसानी से उपलब्धता हो जाता है | जिंक उर्वरक का उपयोग कार्बनिक खाद के साथ करने पर जिंक तत्व की बढती है। जल निकास का उचित प्रबधन आवश्यक मृदा का तापमान भी जिंक की उपलब्धता को प्रभावित करता है | मृदा के तापमान में कमी होने पर जिंक उपलब्धता घटती है। मृदा का तापमान बढने पर जिंक की उपलब्धता बढती है, इसलिए ठंडे क्षेत्रों में मृदा का तापमान नियंत्रित करने के लिए मल्च का उपयोग जरुरी है। मृदा में जिंक के दो महत्वपूर्ण श्रोत है। एक कार्बनिक श्रोत तथा दूसरा अकार्बनिक स्रोत। दोनों से जिंक की पूर्ति किया जा सकता है। कार्बनिक स्त्रोत जैविक खाद जैसे गोबर खाद, कम्पोस्ट खाद, केंचुआ खाद, हरी खाद, मुर्गी खाद एवं शहरी अवशिष्ट से निर्मित खाद का उपयोग कर जिंक तत्व की पूर्ति बिना किसी उर्वरक के उपयोग ही की जा सकती है। इन खादों में जिंक तत्व अल्प मात्रा में होता है, लेकिन प्रतिवर्ष इनका प्रयोग करने से जिंक जैसे सूक्ष्म तत्व की पूर्ति आसानी से की जा सकती है। अकार्बनिक स्रोत जिंक के विभिन्न अकार्बनिक स्रोत में जिंक सल्फेट, जिंक कार्बोनेट, जिंक फास्फेट एवं चिलेट शामिल हैं। सामान्यत: जिंक सल्फेट आसानी से उपलब्ध होने वाला सस्ता एवं जिंक का सर्वश्रेष्ट स्रोत हैं | इसमें 21 से 33 प्रतिशत तक जिंक की मात्रा होती है | यह जल में तीव्र घुलनशील होने के कारण पौधों में जिंक की कमी को आसानी से पूरा करता है। मोनोहाइड्रेट जिंक सल्फेट (33 प्रतिशत जिंक) व हेप्टाहाइड्रेट जिंक सल्फेट (21 प्रतिशत जिंक) दोनों ही समान रूप से जिंक की कमी वाली मृदाओं में प्रयोग मृदा में तथा पर्णीय छिड़काव के माध्यम से पौधों पर किया जाता है। मृदा एवं पौधों में जिंक का प्रबंधन एक वर्ष के अंतराल से मृदा में गोबर की खाद को 10 – 15 टन प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग कर सभी सूक्ष्म तत्वों की पूर्ति की जा सकती है। गोबर की खाद पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध न होने पर 4 – 5 टन गोबर की खाद के साथ 50 प्रतिशत जस्ते की अनुशंसित मात्रा के प्रयोग से इसकी पूर्ति कर सकते हैं। मृदा में जिंक की कमी के स्तर के आधार पर उर्वरक की मात्रा बढाई या घटाए जा सकती है | लंबे समय तक सामन्य फसल उत्पादन लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है।
डॉ खलील खान ने बताया कि फसलों में जिंक की कमी के लक्षण दिखाई देने पर 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट के घोल का छिड़काव दो से तिन बार 10 – 15 दिनों के अंतराल पर करने से जिंक की पूर्ति कर सकते हैं। धान की  जड़ों को एक प्रतिशत के जिंक सल्फेट के घोल से उपचारित कर रोपाई करनी चाहिए | जिंक युक्त उर्वरकों की उपयोगिता बढ़ाने के लिए मृदाओं में इनका प्रयोग कार्बनिक खाद के साथ जिंक युक्त उर्वरक के प्रयोग को जिंक के अकेले प्रयोग से अधिक लाभ होता है। 5 किलोग्राम जिंक प्रति हैक्टेयर की बजाय 4 टन गोबर की खाद के साथ 2.5 किलोग्राम जिंक प्रति हैक्टेयर का प्रयोग अधिक प्रभावी होता है। कमी वाली मृदाओं में इसकी पूर्ति जिंक सल्फेट 21 प्रतिशत 25 किलोग्राम या जिंक सल्फेट 33 प्रतिशत 15 किलोग्राम या चिलेट जिंक 40 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से करनी चाहिए। जिंक की अत्यधिक कमी वाली मृदाओं में जिंक तत्वयुक्त उर्वरक का प्रयोग करने के साथ घोल का छिड़काव भी करना चाहिए। फसलों में जल घुलनशील जिंक उर्वरक का उपयोग पौधों की पत्तियों पर छिड़काव करके पौधों में जिंक की कमी को दूर किया जा सकता है। मृदा की अपेक्षा पत्तियों पर छिड़काव से अच्छे परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं | कृषि में इन उर्वरकों का उपयोग छिड़काव के साथ – साथ बूंद – बूंद सिंचाई के माध्यम से भी किया जाता है। फल वाले पौधों में जिंक सल्फेट 21 प्रतिशत को १५५ – 200 ग्राम प्रति पौध की दर से थाले के आस – पास मृदा में मिलाकर कमी की पूर्ति की जा सकती है। निचली भूमि में लगने वाली धान की फसल में पडलिंग करने के पश्चात जिंक युक्त उर्वरक को मृदा में प्रयोग कर इसकी उपलब्धता को बढ़ाया जा सकता है। महीन कण वाली मृदा की अपेक्षा बड़े कन वाली मृदा में जिंक सल्फेट का उपयोग दो गुना अधिक मात्रा में करना चाहिए। मृदा में इसकी पूर्ति जिंक लेपितयुक्त उर्वरक उपयोग करने से भी की जा सकती है। जिंक युक्त उर्वरकों का उपयोग कभी भी फास्फोरस युक्त उर्वरकों के साथ मिश्रति कर नहीं करना चाहिए।

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