कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डी. आर. सिंह के निर्देश के क्रम में आज सस्य विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ आशीष श्रीवास्तव ने किसानों हेतु एडवाइजरी जारी की है। उन्होंने बताया कि किसान यदि बदलते कृषि परिवेश में सगंधीय (लेमनग्रास, पामारोजा, सिट्रोनेला) के साथ पंक्ति प्रबंधन करते हुए फसलें जैसे अरहर, मक्का, गेहूं, राई, अलसी, आलू व टमाटर की खेती करतें हैं तो अपनी आय में अतिरिक्त वृद्धि कर सकते हैं। डॉक्टर श्रीवास्तव ने बताया की वर्तमान में तीनों सगंधीय फसलों के साथ शोध कार्य पिछले कई वर्षों से कर रहे हैं जिसके परिणाम काफी उत्साहवर्धक आए हैं। डॉ श्रीवास्तव ने बताया कि गेहूं रबी की प्रमुख फसल है जिसमें पिछले कुछ समय से पाया गया है कि फरवरी के अंतिम सप्ताह में अचानक तापमान में वृद्धि के कारण तथा तेज आंधी व असामयिक वर्षा के कारण गेहूं की फसल कमजोर होने का डर रहता है। उन्होंने बताया कि जब सगंधीय फसलों के साथ गेहूं की फसल करते हैं। तो एकल फसल की तुलना में किसान को हानि कम होती है। तथा लाभ अधिक होता है। डॉक्टर श्रीवास्तव ने बताया कि नवीन शोधों के परिणामों से पता चला है कि एकल गेहूं की फसल करने से प्रति हेक्टेयर लागत ₹30 से 35 हजार के मध्य आती है तथा शुद्ध लाभ ₹ 35 से ₹40 हजार होता है जबकि अंत: फसल के साथ खेती करने से लागत ₹ 21 से 23 हजार प्रति हेक्टेयर जबकि शुद्ध आय ₹ 44 से 48 हजार प्रति हेक्टेयर होती है। उन्होंने कहा कि अंत: फसलों में सगंधीय पौधों को एक बार रोपण करने के बाद चार-पांच वर्ष तक फसल रहती है तथा वर्ष में इसकी दो तीन बार कटाई कर पत्तियों का तेल शोधन कर 80 से 100 किलोग्राम सगंधीय तेल प्रति हेक्टेयर प्राप्त करते हैं। जिससे किसान की अतिरिक्त आमदनी होती है। उन्होंने बताया कि सगंधीय पौधों के साथ खेती करने पर मुख्य फसल को अन्ना पशुओं व कीट एवं रोगों के प्रकोप तथा अन्य व्याधियों से बचाया जा सकता है।