कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शस्य विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. आशीष श्रीवास्तव ने सिट्रोनेला ग्रास जैसे सौगंधीय पौधों के साथ अंत: फसली खेती के लिए किसानों को एडवाइजरी दी है। जिससे किसानों की आय में इजाफा हो। डॉक्टर श्रीवास्तव ने बताया कि इस विधि से खेती करने पर तीन लाइनों में कोई भी फसल जैसे सिट्रोनेला को लगाने के उपरांत 3.5 मीटर क्षेत्रफल छोड़कर जिससे ट्रैक्टर आसानी से चलाया जा सके। तत्पश्चात पुनः सगंधीय फसलों की जड़ों की तीन लाइनों की रोपाई या बिजाई की जाती है। उन्होंने बताया कि इस तरह से लगभग 12860 संगन्धीय फसलों की जड़े प्रति हेक्टेयर लगाई जाती हैं तथा बीच में रिक्त स्थान पर मक्का की अंत: फसल किसान ले सकते हैं।
डॉक्टर श्रीवास्तव ने बताया कि इस कृषि तकनीकी में लगभग 60000 खर्च प्रति हेक्टेयर आता है। जबकि शुद्ध लाभ लगभग 1,10,000 से 1,80,000 प्रति हेक्टेयर तक होता है। उन्होंने बताया कि इन सभी फसलों की कटाई उपरांत आसवन इकाई में आश्वित तेल निकालते हैं। सिट्रोनेला में सिट्रोनेलाल 31 से 35%, जिरेनोइल 22 से 30% तथा सिट्रोनेलाल 7 से 11 प्रतिशत पाया जाता है। इसका प्रयोग मच्छर अगरबत्ती एवं हर्बल थेरेपी में होता है। सिट्रोनेला तेल की कीमत लगभग 12000 से 14000 प्रति लीटर होती है। इसका प्रयोग एंटीसेप्टिक क्रीम, मच्छर भगाने वाले उत्पाद, परफ्यूम, साबुन एवं डिटर्जेंट पाउडर में किया जाता है। सिट्रोनेला की बुवाई जुलाई के महीने में की जाती है।