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सीएसए विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने किया आलू उत्पादक किसानों के प्रक्षेत्रों पर दौरा, दी पछेती झुलसा रोग झुलसा से बचाने की सलाह

कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डी.आर.सिंह के निर्देश के क्रम में विश्वविद्यालय के पादप रोग विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डॉ. एस. के. विश्वास के नेतृत्व में कृषि वैज्ञानिकों की टीम ने जनपद कन्नौज और कानपुर के आलू उत्पादक किसानों के प्रक्षेत्रों का दौरा कर आलू फसल में लग रहे पछेती झुलसा रोग की गंभीरता का आकलन किया। 

विश्वविद्यालय के मीडिया प्रभारी डॉ. खलील खान ने बताया की जनपद कन्नौज में लगभग 50 हजार हेक्टेयर, फर्रुखाबाद में 35 हजार हेक्टेयर, इटावा में 20 हजार हेक्टेयर, कानपुर नगर में 16250 हेक्टेयर, औरैया में 5610 हेक्टेयर तथा कानपुर देहात में 3210 हेक्टेयर क्षेत्रफल एवं कानपुर मंडल में लगभग 1 लाख 30 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में आलू की खेती की जा रही है। डॉ. एस.के. विश्वास ने बताया कि वर्तमान समय में कड़ाके की ठंड व हल्की बारिश तथा आलू की पत्तियां अधिक समय तक नम रहने के कारण पछेती झुलसा रोग की शुरुआत हो चुकी है। डॉ. विश्वास ने आलू उत्पादक किसानों के प्रक्षेत्रो पर भ्रमण के दौरान देखा कि पछेती झुलसा रोग का प्रभाव 20 से 25% तक है। 

डॉ. विश्वास ने किसानों को सलाह दी है कि असरकारक फफूंदी नाशक दवा जैसे:मैटको या इक्वेशन प्रो या कर्ज़ेट या रेडोमिल गोल्ड की एक  मिली लीटर दवा को प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोलकर अविलंब फसल पर छिड़काव कर दें। डॉ. विश्वास ने किसानों से वार्ता कर पाया कि जो फफूंदी नाशक दवा का प्रयोग किसान कर रहे हैं वह दवा इस रोग के लिए नहीं है तथा संस्तुत मात्रा से अधिक दवा की मात्रा का प्रयोग किसान कर रहे हैं। उन्होंने किसानों को सलाह दी है कि दवा प्रयोग के पूर्व कृषि वैज्ञानिकों से परामर्श के उपरांत  ही केवल संस्तुत दवा एवं उसकी समुचित मात्रा का प्रयोग करें। उन्होंने किसानों को सावधान करते हुए बताया कि अपने स्तर से दवा का प्रयोग फसल में कदापि न करें इसके अतिरिक्त इस रोग से ग्रसित आलू को शीतगृह में भंडारित न करें क्योंकि ऐसे रोग ग्रसित कंदों में सड़न पैदा हो जाती है जिससे किसानों को आर्थिक नुकसान हो सकता है। इस दौरान उद्यान वैज्ञानिक डॉक्टर अमर सिंह यादव, डॉ. विनोद कुमार दोहरे, डॉ. अरविंद कुमार एवं आलू उत्पादक किसान उपस्थित रहे।

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