नई दिल्ली। हम हिंदी को राष्ट्र भाषा बनाने की बात तो करते हैं पर भारतीय संविधान में राष्ट्र शब्द लिखा ही नहीं है, राज्य लिखा गया है। शायद इस बात की और किसी का ध्यान गया ही नहीं है। हम आज भी उपनिवेश ही हैं। ये बातें सुप्रसिद्ध फिल्म अभिनेता अखिलेन्द्र मिश्रा ने आज रामानुजन कॉलेज नई दिल्ली द्वारा ऑनलाइन आयोजित सात दिवसीय फैकल्टी डेवलपमेंट प्रोग्राम के उदघाटन के अवसर पर कहीं।
भारत की विशेषता क्या है ?
अखिलेन्द्र मिश्रा ने कहा कि हम अपनी संस्कृति के अनुसार नव वर्ष क्यों नहीं मनाते हैं जबकि चीन, जापान आदि अनेक देश अपनी संस्कृति के अनुसार ही नव वर्ष मनाते हैं। प्रकृति कहती है किसी का भी संवर्धन उसकी जड़ में पानी दिए बिना संभव नहीं है उन्होंने सवाल किया, भारत का वैशिष्ट्य क्या है? दिल्ली का लाल क़िला, आगरा का ताजमहल या मुंबई का जुहू चौपाटी। उत्तर देते हुए उन्होंने कहा, भारत की विशेषता है आध्यात्मपरक संस्कृति।
लार्ड मैकाले ने किया शिक्षा प्रणाली को ध्वस्त
भारत की शिक्षा प्रणाली और संस्कृति को ध्वस्त करने का कार्य किया, लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति ने। उन्होंने जानकारी देते हुए कहा कि मैकाले की शिक्षा प्रणाली जब लागू हुई तो पांच साल तक पासिंग मार्क्स नहीं तय हो पाए थे। बाद में इंग्लैण्ड में लागू पासिंग मार्क्स 65 प्रतिशत का आधा यानी 32.5 प्रतिशत लागू हुआ, जो कुछ समय बाद 33 प्रतिशत कर दिया गया। आज तक किसी का भी ध्यान इस ओर नहीं गया है। शिक्षा की इस प्रणाली का हमारी संस्कृति और भाषा पर व्यापक प्रभाव हुआ। चिंता का विषय है कि हिंदी साहित्य में अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग हो रहा है। कहानी और कवितायेँ लिख देना ही साहित्य नहीं है।
संस्कृति को नुकसान पहुंचा रहा है सिनेमा
अखिलेन्द्र मिश्रा ने बताया कि मुंशी प्रेमचंद ने केवल एक फिल्म ही लिखी थी मिल मज़दूर। फिल्म इंडस्ट्री से उनके जाने के बाद से साहित्य चला गया। आज कहानियों को तोड़-मरोड़कर फिल्म बनाई जा रही हैं। आज फिल्म लेखकों के शब्द कोष संकीर्ण हैं। उन्हें पर्यायवाची तो पता ही नहीं हैं। कह सकते हैं कि सिनेमा वाले भाषा और संस्कृति की धज्जियाँ उड़ा रहे हैं।
सात दिवसीय इस ऑनलाइन संकाय संवर्धन कार्यक्रम में देशभर के विभिन्न संस्थानों के एक हज़ार प्रतिभागी भाग ले रहे हैं। इसके संयोजक डॉ आलोक पाण्डेय हैं ।