कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शाकभाजीअनुभाग कल्याणपुर में स्थित सब्जी उत्कृष्टता केंद्र में शोध कार्य देख रहे शाकभाजी सस्यविद डॉ राजीव द्वारा बताया गया कि तापमान बड़ी तेजी से बढ़ रहा है जो संरक्षित ढांचों के अंतर्गत उत्पादित हो रही सब्जी फसलों विशेष रुप से टमाटर एवं शिमला मिर्च में पुष्पन एवं फल विकास की प्रक्रिया को बाधित कर सकता है। संरक्षित ढांचों में इन फसलों की अवधि लंबी होने के कारण पुष्पन एवं फल विकास दोनों प्रक्रिया साथ साथ चलती रहती हैं इसलिए यह आवश्यक है कि किसान निरंतर सिंचाई करते रहे तथा सिंचाई इस प्रकार करें कि जिससे पौधों को भूमि से नमी मिलती रहे। बीच-बीच में संरक्षित ढांचों के अंतर्गत लगे फोगर उपकरणों का भी प्रयोग करते रहे। जिससे ढांचों के अंदर पर्याप्त नमी बनी रहेगी तथा बढ़ते तापमान का प्रतिकूल प्रभाव फसलों पर नहीं पड़ेगा।
डॉ राजीव द्वारा यह भी बताया गया कि एन.पी.के. 19:19 :19 का 1.5 से 2% घोल का पर्णीय छिड़काव करें तथा टपक सिंचाई पाइप के माध्यम से प्रत्येक सप्ताह एक से दो बार मिट्टी में प्रयोग करें। ताकि पौधों को नियमित रूप से खुराक मिलती रहे। उन्होंने यह भी बताया कि पौधों को हरा-भरा बनाए रखने के लिए लगभग 12 से 15 दिन के अंतराल पर सूचहम पोषक तत्व युक्त उर्वरक का पर्णीय छिड़काव करें जो उत्पादन बढ़ाने में सहायक होगा। यदि सूचहम पोषक तत्व युक्त उर्वरक उपलब्ध नहीं है तो इसके स्थान पर सागरिका का पर्णीय छिड़काव कर सकते हैं। डॉ राजीव द्वारा यह भी बताया गया कि पाली हाउस एवं नेट हाउस आदि संरक्षित ढांचों के अंदर वर्तमान समय में खीरा ,करेला,तरोई आदि लता वर्गी फसलों की बुवाई सीधे अथवा अलग से नर्सरी तैयार करके की जा सकती है। नर्सरी तैयार करने के लिए कोकोपीट, वर्मीकुलाईट,एवं परलाइट का 3:1:1 अनुपात का मिश्रण तैयार कर प्रोन्द्रे में भरकर बीजों की बुवाई कर देते हैं। सामान्यतया लगभग 20 से 22 दिन में पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है यह एक मिट्टी रहित माध्यम है।जिसमें उच्च गुणवत्ता की पौध तैयार हो जाती है।खीरा की पार्थेनोकर्पिक प्रजाति जैसे पूसा,बीज रहित खीरा- 6, मल्टीस्टार, हिल्टन आदि बाजार में उपलब्ध हैं न जिसमें सभी फूल मादा ही लगते हैं तथा बड़ी संख्या में फल लगते हैं जिनको किसान उगाकर अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ कर सकते हैं।