Breaking News

कम समय में पकने वाली मुख्य दलहनी फसल है मूंग, मध्य अप्रैल तक करें बुवाई

कानपुर। मूंग ग्रीष्म मौसम की कम समय में पकने वाली एक मुख्य दलहनी फसल है। इसकी बुवाई किसान मध्य अप्रैल तक आसानी से कर सकते हैं इसके दाने का प्रयोग मुख्य रूप से दाल के लिए किया जाता है, जिसमे 22-24% प्रोटीन, 55-60% काब्रोहाइड्रेट एवं 1.3% वसा होता है। दलहनी फसल होने के कारण इसकी जड़ो में गांठें पाई जाती है जो की वायुमंडलीय नत्रजन का मृदा में स्थिरीकरण (38-40कि.ग्रा. नत्रजन प्रति हैक्टेयर) एवं फसल की खेत से कटाई उपरांत जड़ो एवं पत्तियों के रूप में प्रति हैक्टेयर 1.5 टन जैविक पदार्थ भूमि में छोड़ा जाता हैं जिससे भूमि में जैविक कार्बन का अनुरक्षण होता है एवं मृदा की उर्वराशक्ति बढ़ाती हैं। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के दलहन वैज्ञानिक डॉ मनोज कटियार ने बताया कि बताया कि मूंग की फसल हेतु 25-30 कि.ग्रा/है. बीज की आवश्यकता पड़ती है। बुवाई से पूर्व बीज को कार्बेन्डाजिम+केप्टान (1+2) 3 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। डॉ.कटियार ने कहा कि मूंग के लिए नम एवं गर्म जलवायु कि आवश्यकता होती है। इसकी खेती वर्षा ऋतू में की जा सकती है। इसकी वृद्धि एवं विकास के लिए 25-32 डिग्री सेल्सियस तापमान अनुकूल पाया गया है। मूंग के लिए 75-90 से.मी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र उपयुक्त पाए गए है। पकने के समय साफ मौसम तथा 60% आर्द्रता होना चाहिए। पकाव के समय अधिक वर्षा हानिप्रद होती है।

मुंग की खेती के उत्तम भूमि 
मूंग की खेती के हेतु दोमट से बलुआ दोमट भूमियां जिनका पी.एच. 7.0 से 7.5 हो, इसके लिए उत्तम है। खेत में जल निकास उत्तम होना चाहिए। भूमि की तैयारी ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती के लिए रबी फसलों के कटने के तुरंत बाद खेत की तुरंत जुताई कर 4-5 दिन छोड़कर पलेवा करना चाहिए। पलेवा के बाद 2-3 जुताईयां देशी हल या कल्टीवेटर से कर पाटा लगाकर खेत को समतल एवं भुरभुरा बनावें। इससे उसमें नमी संरक्षित हो जाती है व बीजों से अच्छा अंकुरण मिलता है।

खाद एवं उर्वरक 
मूंग की खेती में अच्छे उत्पादन के लिए बुवाई से पूर्व खेत तैयार करते समय अच्छी सड़ी हुई गोबर की खाद 15 – 20 टन / एकड़ की दर से मिट्टी में मिला देना चाहिए। रासायनिक खाद एवं उर्वरक की मात्रा किलोग्राम /हे. होनी चाहिए, नाइट्रोजन 20,फास्फोरस 20,पोटाश 20, गंधक 20, जिंक 20, नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व पोटाश उर्वरकों की पूरी मात्रा बुवाई के समय 5-10 से.मी. गहरी कूड़ में आधार खाद के रूप में दें।

हानिकारक कीट एवं रोग और उनका रोकथाम कीट नियंत्रण 
मूंग की फसल में प्रमुख रूप से फली भ्रंग, हरा फुदका, माहू तथा कम्बल कीट का प्रकोप होता है। पत्ती भक्षक कीटों के नियंत्रण हेतु क्विनालफास की 1.5 लीटर या मोनोक्रोटोफॉस की 750 मि.ली. तथा हरा फुदका, माहू एवं सफेद मक्खी जैसे-रस सूचक कीटों के लिए डायमिथोएट 1000 मि.ली. प्रति 600 लीटर पानी या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. प्रति 600 लीटर पानी में 125 मि.ली. दवा के हिसाब से प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें।

रोग नियंत्रण 
मूंग में अधिकतर पीत रोग, पर्णदाग तथा भभूतिया रोग प्रमुखतया आते हैं। इन रोगों की रोकथाम हेतु रोग निरोधक किस्में हम-1, पंत मूंग-1, पंत मूंग-2, टी.जे.एम-3, जे.एम.-721, श्वेता आदि का उपयोग करना चाहिये। पीत रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है इसके नियंत्रण हेतु मेटासिस्टॉक्स 25 ईसी 750 से 1000 मि.ली. का 600 लीटर पानी में घोल कर प्रति हैक्टर छिड़काव 2 बार 15 दिन के अंतराल पर करें। फफूंद जनित पर्णदाग (अल्टरनेरिया/ सरकोस्पोरा/ माइरोथीसियस) रोगों के नियंत्रण हेतु डायइथेन एम. 45, 2.5 ग्रा/लीटर या कार्बेन्डाजिम,डायइथेन एम. 45 की मिश्रित दवा बना कर 2.0 ग्राम/लीटर पानी में घोल कर वर्षा के दिनों को छोड़कर खुले मौसम में छिड़काव करें। आवश्यकतानुरूप छिड़काव 12-15 दिनों बाद पुनः करें।

कटाई के लिए
मूंग की फलियों जब काली पड़ने लगे तथा सुख जाये तो फसल की कटाई कर लेनी चाहिए। अधिक सूखने पर फलियों चिटकने का डर रहता है। फलियों से बीज को थ्रेसर द्वारा या डंडे द्वारा अलग कर लिए जाता है।

About rionews24

Check Also

KNIT : अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस पर हुआ संगोष्ठी का आयोजन

सुल्तानपुर। कमला नेहरु प्रौधोगिकी संस्थान के सिविल इंजीनियरिंग विभाग में अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस उत्साहपूर्वक मनाया …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *