कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डीआर सिंह के निर्देश के क्रम में आज दिनांक 6 मई 2021 को मृदा विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ रविंद्र कुमार ने किसानों को खेतों में हरी खाद प्रयोग पर एडवाइजरी जारी की है उन्होंने कहा की किसान भाइयों को मृदा की उपजाऊ शक्ति बनाए रखने के लिए हरी खाद एक सबसे सस्ता विकल्प है। उन्होंने किसान भाइयों को हरी खाद बनाने के लिए अनुकूल फसलो के बारे में बताया कि ढैंचा, लोबिया, उड़द, मूंग, ग्वार, एवं बरसीम मुख्य फसलें हैं। जो हरी खाद बनाने में प्रयोग की जाती हैं। डॉ कुमार ने बताया कि ढैंचा की मुख्य किस्में सस्बेनिया अजिप्टिका, सस्बेनिया रोस्ट्रेटा, सस्बेनिया अकुलेता अपने त्वरित खनिजिकरण पैटर्न, उच्च नाइट्रोजन मात्रा के कारण बाद में बोई गई मुख्य फसल की उत्पादकता पर उल्लेखनीय प्रभाव डालने में सक्षम है।
हरी खाद बनाने की विधि के बारे में विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉक्टर देवेंद्र सिंह ने बताया कि अप्रैल- मई महीने में गेहूं की कटाई के बाद खेत की सिंचाई कर दें खेत में खड़े पानी में 30 से 35 किलोग्राम ढैंचा का बीज प्रति हेक्टेयर की दर से फैला दें। तथा जरूरत पड़ने पर 15 से 20 दिन में ढैंचा फसल की हल्की सिंचाई कर दें। इसके साथ ही 20 दिन की अवस्था पर 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से यूरिया को खेत में फैला देते हैं जिससे जड़ ग्रंथियां बनने में सहायता मिलती है।ढैंचा की 40 से 45 दिन की अवस्था में हल चलाकर हरी खाद को खेत में मिला दिया जाता है इस तरह लगभग 15 से 20 टन प्रति हेक्टेयर की दर से हरी खाद उपलब्ध हो जाती है।
विश्वविद्यालय के मीडिया प्रभारी एवं मृदा वैज्ञानिक डॉक्टर खलील खान ने हरी खाद के लाभ एवं पोषक तत्वों के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि हरी खाद केवल नत्रजन व कार्बनिक पदार्थों का ही साधन नहीं है बल्कि इससे मिट्टी में कई पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं एक अध्ययन के अनुसार 1 टन ढैंचा के शुष्क पदार्थ द्वारा मृदा में जुटाए जाने वाले पोषक तत्व हैं,
पोषक तत्व मात्रा किग्रा./ टन
(शुष्क पदार्थ)
नत्रजन 26.2
फास्फोरस 7.3
पोटाश 17.8
गंधक 1.9
कैल्शियम 1.4
मैग्नीशियम 1.6
जस्ता 25 पीपीएम
लोहा 105 पीपीएम
तांबा 7 पीपीएम
डॉक्टर खान ने बताया कि इसके अतिरिक्त हरी खाद के प्रयोग से मृदा भुरभुरी, वायु संचार अच्छा, जल धारण क्षमता में वृद्धि, अम्लीयता/ छारीयता में सुधार एवं मृदा क्षरण भी कम होता है।
हरी खाद के प्रयोग से मृदा में सूक्ष्मजीवों की संख्या एवं क्रियाशीलता बढ़ती है तथा मृदा की उर्वरा शक्ति एवं उत्पादन क्षमता भी बढ़ता है। इसके प्रयोग से रासायनिक उर्वरकों का उपयोग कम कर बचत कर सकते हैं तथा टिकाऊ खेती भी कर सकते हैं।