नई दिल्ली। यह स्वीकार किया जा चुका है कि बेहतर स्वास्थ्य तथा व्यक्तिगत विकास के लिए योग किसी वरदान से कम नहीं है। पर क्या इसे कार्यस्थल पर उत्पादकता बढ़ाने के उपाय के रूप में अपनाया जा सकता है? क्या व्यापक रूप से योग को अपनाने से अर्थव्यवस्था और देश के प्रणालीबद्ध विकास पर सार्थक प्रभाव होता है? इन प्रश्नों तथा योग के उत्पादकता के पहलुओं का पता लगाने के लिए भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने एक उच्च स्तरीय अन्तर्विषयी समिति बनाई है। इसकी पहली बैठक बुधवार को वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से हुई। इस समिति के अध्यक्ष एसवीवाईएएसए के कुलपति डॉ. एच. आर. नागेंद्र हैं और इसके सदस्यों में एम्स नई दिल्ली, आईआईएम बैंगलुरू, आईआईटी बॉम्बे, विभिन्न अग्रणी योग संस्थानों, कॉर्पोरेट क्षेत्र तथा आयुष मंत्रालय के प्रतिनिधि हैं।
समिति ने अपनी पहली बैठक में माना कि पिछले पांच वर्षों में वैश्विक स्तर पर योग की लोकप्रियता में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। योगाभ्यास करने वालों द्वारा अध्यात्म के साथ योग के संबंध और योग के स्वास्थ्य लाभों को अपनाया गया है। लेकिन काफी हद तक योग की उत्पादकता पहलू, कार्य स्थल पर बेहतर कार्य प्रदर्शन के लिए कर्मचारियों को लाभ देना, की संभावनाओं की तलाश नहीं की गई है। कर्मचारियों द्वारा अनुभव किए जा रहे शारीरिक तथा मानसिक दबावों और वर्तमान महामारी से उत्पन्न तनाव को देखते हुए योग की उत्पादकता पहलू विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो गयी है।
कुछ सदस्यों ने इस समय भारत की विकास आकांक्षा शिखर पर होने के संदर्भ में उत्पादकता के लिए योग को महत्वपूर्ण पहलू बताया। यह स्वीकार किया गया कि समिति का एक प्राथमिक कार्य योग को उत्पादकता से जोड़ने के साक्ष्य की समीक्षा करना तथा उसका विशलेषण करना है। तभी उत्पादकता की विभिन्न संभावित दिशा चिन्हित की जा सकेंगी और इनके अनुसार प्रोटोकॉल विकसित किए जा सकेंगे। समिति ने अपनी सिफारिशों को तय करने में विज्ञान तथा साक्ष्य पर आधारित दृष्टिकोण अपनाने का संकल्प व्यक्त किया।
स्वास्थ्य पर योग के प्रभाव सहित वर्तमान साक्ष्य आधार और प्रभावोत्पादकता तथा सार्वभौमिकरण का मार्ग प्रशस्त करने वाले कार्यस्थल पर बाद के प्रभावों का मिलान वैज्ञानिक साक्ष्य से किया जाएगा। विभिन्न संगठन, उद्योग तथा कॉर्पोरेट घराने अपने कर्मचारियों के लिए कार्यस्थल पर योग के लिए इन्स्ट्रक्टरों को भर्ती कर रहे हैं। उनका मानना है कि योग से कार्यस्थल से जुड़े तनाव कम होंगे, अंतरव्यक्तिक संबंधों में सुधार होगा, तनाव में कमी आएगी, बीमारी से अनुपस्थिति कम होगी और परिणामस्वरूप उत्पादकता बढ़ेगी।
उत्पादकता बढ़ाने का अर्थ विभिन्न संदर्भों में अलग-अलग हो सकता है जैसे लाभ में वृद्धि करना, संचालन लागत घटाना, संसाधानों का अधिकतम उपयोग करना, विकास के अवसरों का लाभ उठाना, स्पर्धा बढ़ाना, अक्रियाशीलता कम करना तथा कर्मचारी के सुख को बढ़ाना है। इस तरह समिति का कार्य विविधता भरा और जटिल होगा।
विश्वविद्यालयों अंग्रेजी तथा आयुष पद्धति के अस्पतालों, कॉर्पोरेट घरानों, योग संस्थानों सहित और सार्वजनिक क्षेत्र के विभिन्न संस्थान इस अध्ययन से जुड़ेंगे। राष्ट्रीय उत्पादकता परिषद, नई दिल्ली भी इस अध्ययन को समर्थन दे रही है। समिति अपनी प्रारंभिक सिफारिशें मई 2021 तक प्रस्तुत करेगी।