कानपुर देहात। कृषि विज्ञान केंद्र, दलीप नगर कानपुर की गृह वैज्ञानिक डॉ. मिथिलेश वर्मा एवं निमिषा अवस्थी ने राखी त्यौहार के मद्देनजर जैव संवर्धित गांव अनूपपुर में दो दिवसीय रोजगार परक प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित कर ग्रामीण युवतियों को विभिन्न प्रकार की कलात्मक राखियां बनाने का विधिवत प्रशिक्षण प्रदान किया, साथ ही राखियों विपणन हेतु बाजार से प्रबंधन की जानकारी भी दी।
कार्यक्रम की शुरुआत में वरिष्ठ गृह वैज्ञानिक डॉ. मिथिलेश वर्मा ने बताया हमारे जीवन में कई रिश्ते होते हैं, लेकिन भाई-बहन का रिश्ता सबसे अनोखा होता है। इसमें रूठना-मनाना, एक-दूसरे का साथ देना, एक-दूसरे को सपोर्ट करना, पापा की डांट हो या मम्मी की मार इनसे एक-दूसरे को बचाना आदि। इन सबकी झलक इस रिश्ते में मिलती है। भाई-बहन के इसी प्यार को दर्शाता है राखी का त्योहार। डॉ. वर्मा ने रक्षाबंधन का इतिहास बताते हुए बताया की जब मध्यकालीन युग में मुस्लिमों और राजपूतों के बीच संघर्ष चल रहा था। उस वक्त चित्तौड़ के राजा की विधवा रानी कर्णावती ने गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह से अपनी और अपनी प्रजा की सुरक्षा का कोई रास्ता न निकलता देख हुमायूं को राखी भेजी थी। इसके बाद ही हुमायूं ने रानी कर्णावती की रक्षा कर, उन्हें अपनी बहन का दर्जा दिया था। तब से सभी बहनें अपने भाइयों को प्यार एवं सुरक्षा का प्रतीक राखी बांधती हैं, अतः इसके बिक्री में कहीं कोई अड़चन नहीं। अतः ग्रामीण युवतियों राखी बना कर बिक्री कर लाभ कमा सकती हैं।
कार्यक्रम में विभिन्न तरह की राखियां बनाना सिखाते हुए डॉ निमिषा अवस्थी ने कहा की राखियों का बाजार काफी बड़ा है कानपुर में दिल्ली, मुंबई, राजस्थान इत्यादि शहरों से राखियां आती है। अतः वे काफी महंगी होती हैं। साधारण धागे वाली राखियां भी 20 रुपये प्रति से कम नही मिलती जबकि जब आप राखी बनाने पर वह अच्छी राखी भी बमुश्किल 8-10 रुपये लागत में बन जाती है। अतः राखी के त्योहार में बहने छोटा निवेश कर के राखी बना कर बेच कर अच्छा मुनाफा ले सकती हैं। डॉ अवस्थी ने नवोन्मेष करते हुए कहा की राखियो में मूंगा -मोती लगते हैं जिससे पर्यावरण प्रभावित हो सकता है। अतः राखियो में अगर सब्जियों के बीजों से सजावट कर दें तो वे पर्यावरण फ्रेंडली राखियां हो जायेगी। प्रशिक्षण में कुल 30 युवतियों/ महिलाओं ने प्रतिभाग किया।