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जायद में मक्का की खेती कर कमाएं अधिक लाभ : डॉ. हरिश्चन्द्र सिंह

कानपुर नगर। चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डी. आर. सिंह के निर्देश के क्रम में मंगलवार को विश्वविद्यालय के मक्का अभिजनक  डॉ. हरिश्चन्द्र सिंह एवं डॉ. एच. जी. प्रकाश (पूर्व निदेशक शोध) के अनुसार अनाज वाली फसलों में मक्का सबसे महत्वपूर्ण फसल है। यह फसल तीनों सीजन में रबी, खरीफ, जायद में उगाई जाने वाली एकमात्र खाद्यान्न फसल है। प्रतिदिन प्रति हेक्टेयर उत्पादन के लिहाज से इसके बराबर कोई दूसरी फसल नहीं है। उन्होंने किसानों को सलाह दी है कि राई, सरसो, सब्जी मटर, आलू आदि की कटाई के उपरान्त खाली हुए खेत में जायद की मक्का  की खेती आसानी से की जा सकती है। किसान खाली खेतों में मक्का की उपयुक्त प्रजातियों की बुआई कर अच्छी कमाई कर सकते हैं। 

डॉ. सिंह ने बताया की जायद मक्का की बुवाई 20 मार्च तक किसान कर सकते हैं। मक्के की सभी प्रजातियां 80 से 110 दिन में पक जाती हैं। जिससे आगामी खरीफ सीजन में धान, अरहर, मक्का, खरीफ की सब्जिय़ां दलहन व तिलहन की खेती आसानी से कर सकते  हैं। मक्का के लिए हल्की दोमट से लेकर बलुई दोमट भूमि जल निकास वाली जमीन जिसमें वायुसंचार आसानी से हो सके उपयुक्त है। मक्का का उत्पादन उसकी प्रजाति व किस्म के ऊपर काफी हद तक निर्भर करता है। बीते सालों में विश्वविद्यालयों द्वारा कई उन्नतशील किस्मो का विकास किया गया है। इनसे मक्के का औसत उत्पादन प्रति हेक्टेयर 65 से 70 कुन्तल तक प्राप्त हो सकता है। संकुल प्रजातियों से 30 से 40 कुन्तल प्रति हेक्टेयर की उपज प्राप्त हो सकती है। उन्होंने मक्का की उर्वरक के बारे में बताया कि नाइट्रोजन फास्फोरस, पोटाश, जिंक की पूरी मात्रा बोआई के समय लाइनों में दे देनी चाहिए। शेष नाइट्रोजन को दो भागों में पहली मात्रा फसल बुवाई के 20 दिन बाद, दूसरी 50 से 55 दिन बाद टाप ड्रेसिंग  के रूप में दे देनी चाहिए।

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