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आज है अप्रैल फूल दिवस …जानिए क्यों मनाया जाता है

डॉ. नीरज कुमार
आज एक अप्रैल है यानि मूर्ख दिवस। स्कूल के दिनों में हम इस दिन दोस्तों को मूर्ख बंनाने के नये-नये आइडियाज़ खोजते थे। मूर्ख बनाते भी थे और मूर्ख बनते भी थे। बड़ा मज़ा आता था जब दोस्त मूर्ख बन जाते थे। परन्तु आज तो लगता है कि पूरा साल ही एक अप्रैल ही रहता है। आप सोच रहे  क्या बात हुयी ? तो बात यह है कि आज हम पूरे साल क्या साल दर साल मूर्ख बनते रहते हैं अपने प्रिय जनप्रतिनिधियों के द्वारा।
खैर छोड़िये हम बात करते हैं मूर्ख दिवस की।
यह हँसने और हँसाने का एक ऐतिहासिक दिन है। वैसे तो अप्रैल फूल डे पश्चिमी सभ्यता की देन है लेकिन यह विश्व के अधिकांश देशों सहित भारत में भी धूमधाम से मनाया जाता है। एक अप्रैल आते ही लोगों के दिमाग में दोस्‍तों को मूर्ख बनाने के लिए कोई ना कोई खुरापात चलने लगती है. हालांकि किसी को फूल बनाने के पीछे मकसद यही होता है कि लोगों के चेहरे पर मुस्कान आए। इस मूर्ख दिवस के उपलपक्ष्य में लोग अपने सगे संबंधियों या मित्रों को झूठा उपहार या निमंत्रण भेजते हैं। यहां तक कि मूर्ख बनाने के लिए मूर्ख संदेश भी भेजते हैं। यह संदेश भेजने वाले पहले इसे सही समझते हैं और फिर एक अप्रैल को याद कर नाराज होने के बजाए हंसने लगते हैं।
अप्रैल फूल डे यानि मूर्ख दिवस की शुरुआत कैसे हुई और सबसे पहले इसको कहां व कैसे मनाया गया, ये सवाल सभी के मन में आ रहा होगा। तो अप्रैल फूल डे की शुरुआत को लेकर कोई एक मान्‍यता या कहानी नहीं है। इसको लेकर कई मान्‍यताएं हैं। सर्वाधिक प्रचलित मान्यता ब्रिटेन के लेखक चॉसर की पुस्तक द कैंटरबरी टेल्स की एक कहानी पर आधारित है। चॉसर ने अपनी इस पुस्तक में कैंटरबरी का उल्लेख किया है जहां 13वीं सदी में इंग्लैंड के राजा रिचर्ड सेकेंड और बोहेमिया की रानी एनी की सगाई 32 मार्च 1381 को आयोजित किए जाने की घोषणा की जाती है। कैंटरबरी के जन-साधारण इसे सही मान लेते हैं यद्यपि 32 मार्च तो होता ही नहीं है। इस प्रकार इस तिथि को सही मानकर वहां के लोग मूर्ख बन जाते हैं, तभी से एक अप्रैल, मूर्ख दिवस अर्थात अप्रैल फूल डे मनाया जाने लगा।
ऐसा भी कहा जाता है कि पहले पूरे विश्‍व में भारतीय कैलेंडर की मान्‍यता थी।  जिसके अनुसार नया साल चैत्र मास में शुरू होता था, जो अप्रैल महीने में होता था। बताया जाता है कि 1582 में पोप ग्रेगोरी ने नया कैलेंडर लागू करने के लिए कहा। जिसके अनुसार नया साल अप्रैल के बजाय जनवरी में शुरू होने लगा और ज्‍यादातर लोगों ने नए कैलेंडर को मान लिया। हालांकि कुछ ऐसे लोग भी थे, जिन्‍होंने नए कैलेंडर को मानने से इनकार कर दिया और अप्रैल में ही नया साल मनाने लगे। इस कारण उन्‍हें मूर्ख कहा जाने लगा और यहीं से एक अप्रैल को अप्रैल फूल डे के रूप में मनाया जाने लगा।
उपरोक्‍त मान्‍यताओं के अलावा अप्रैल फूल डे को लेकर और भी कई मान्‍यताएं हैं।  जिनमें एक यह भी है कि साल 1564 से पहले यूरोप के अधिकांश देशों मे एक जैसा कैलंडर प्रचलित था, जिसमें नया साल एक अप्रैल से शुरू होता था। 1564 में वहां के राजा चार्ल्स नवम् ने एक नया कैलेंडर अपनाने का आदेश दिया, जिसमें एक जनवरी से नया साल माना गया था। ज्‍यादातर लोगो ने इस नए कैलंडर को अपना लिया, लेकिन कुछ लोगों ने इस नए कैलंडर को अपनाने से इनकार कर दिया। वे लोग एक अप्रैल को ही साल का पहला दिन मानते थे। इन लोगों को मूर्ख समझकर नया कैलंडर अपनाने वालों ने एक अप्रैल को ‘अप्रैल फूल डे’ के रूप में मनाया।
अंत में यही कहना चाहूंगा कि मूर्ख दिवस की प्रथा हमें यही सिखाती है कि हमें समझदारी के साथ विचार करना चाहिए, किसी के बहकावे में नहीं आना चाहिए और पुरानी मान्यताओं को छोड़कर समय के अनुसार ढ़ल जाना चाहिए, नहीं तो हम मूर्खता के प्रतीक रहेंगे।

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