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नन्ही बूँद

दिव्या दीक्षित

ऐ नन्ही बूँद, ऐ नन्ही बूँद।

क्यों आयी इस धरती पर, आँखे मूंद।

क्या नहीं पता,  तुझे ओ नादान

तू आ गई है, अपने माँ-बाप से दूर।

ऐ नन्ही बूँद, ऐ नन्ही बूँद।

शायद तेरी भी कुछ मजबूरियां रही होंगी, 

मरने से पहले तुझे भी जिम्मेदारियाँ पूरी करनी होंगी।

अपना आस्तित्व खो कर तूने, हमें जीवन दे दिया।

अपना जीवन बचाने के लिए  जिसे हमने नित पिया।

ऐ नन्ही बूँद , ऐ नन्ही बूँद।

एक-एक करके फिर हजार, 

एक, दो नही प्रत्येक साल, 

आती हो लेकर जीवन की आस, 

भर देती हो गागर, झीलें और ताल।

ऐ नन्ही बूँद, ऐ नन्ही बूँद ।

संसार सारा जानता है, 

सब तेरे ही सहारे हैं।

पर न जाने क्यों तेरी करोड़ो की आबादी को,

बेवजह ही बहाते है।

ऐ नन्ही बूँद, ऐ नन्ही बूँद ।

आगे आने वाले दिनों मे है कयास, मेरा ऐ बूँद ।

अपनी बर्बादी का बदला, जल्द ही अब तू भी लेगी।

संसार की बेरुखी  से, तू भी अपना मुँह मोड़ लेगी।

अपने ठिकानों को इस धरती पर तू शायद, जल्द ही अब छोड़ देगी।

तब इस कयामत से जीवन की झलक, देह में ही दम तोड़ देगी।

फिर एक नई शुरुआत भी, तुझसे ही होगी, ऐ नन्ही बूँद 

ऐ नन्ही बूँद, ऐ नन्ही  बूँद।

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