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कहीं आज जीत न जाए

के0 एम0 भाई

जो अक्सर अँधेरे के साये में रहती हैं!!
मैंने देखा है उन आँखों को
जो कभी आंसुओं से भीग जाती हैं
तो कभी एक पहर को ठहर सी जाती है
जो सदियों से एक पलक भी नहीं झपकी
जो कभी एकांत में सिसकती हैं
और कभी शोर में भी शांत हो जाती हैं
जो अक्सर अँधेरे के साये में रहती हैं
और एक आहट से भी डर जाती हैं
जिन्हें डर है कहीं दर्पण
आज चूक न जाए
कहीं मेरा तन
बहक न जाए
जिन्हें डर है कहीं दानव
आज मानव न बन जाए
कहीं उजाला
आज जीत न जाए
कहीं उजाला
आज जीत न जाए ………..

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