सिद्धार्थनगर। ज़िले के लोहिया कला भवन में गुरुवार को आईसीडब्ल्यूए नई दिल्ली के द्वारा प्रायोजित बुद्ध विद्यापीठ महाविद्यालय नौगढ़ सिद्धार्थनगर के तत्वाधान में ‘भारत-चीन संबंध चुनौतियां और अवसर’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्घाटन हुआ।
इस राष्ट्रीय संगोष्ठी की रूपरेखा संयोजक डॉ. शक्ति जायसवाल ने प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि इस सेमिनार में 5 प्रदेशों से 60 विद्वानों के शोध सार हमें मिले हैं, जिन्हें पुस्तक के रूप में उद्घाटित भी किया गया। कार्यक्रम में कुल 6 सत्र और कल का कार्यक्रम नगर पालिका सभागार में संचालित किया जाएगा। भारत-चीन संबंध फाह्यान ह्वेन सॉन्ग के समय से आज तक जनमानस के बीच रोमांच, पहेली और समाधान की खोज करते रहे हैं।
इस कार्यक्रम में उद्घाटन सत्र में मुख्य वक्ता भूतपूर्व राजदूत जॉर्डन लीबिया और माल्टा अनिल त्रिगुणायत ने बताया कि आज भी भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंध बहुत मजबूत है। अविश्वास के बावजूद आज कई ऐसे क्षेत्र हैं जिसमें संबंध को बेहतर कर के 21वी सदी को भारत और चीन एशिया की सदी बना सकते हैं। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पूर्व कुलपति सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, प्रोफेसर रजनीकांत पांडे ने अपने उद्बोधन में कहा कि इस तरह का कार्यक्रम जनपद में पहली बार होना निसंदेह जिले के और एकेडमिक के लिए गौरव का विषय है, इसके लिए उन्होंने प्राचार्य अभय श्रीवास्तव को धन्यवाद दिया।
रक्षा विशेषज्ञ तौर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के अध्यापक और विगत 10 वर्ष से आईडीएसए में सेवारत डॉ. संजीव श्रीवास्तव ने विस्तार पूर्वक भारत चीन संबंध में चुनौतियों और अवसरों पर व्याख्यान दिया। उन्होंने बताया कि चीन किस तरीके से अपना बौद्ध, अपना दलाई लामा और अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है। उन्होंने बताया कि पहले के भारत और आज के भारत में बहुत परिवर्तन हो चुका है, आज का भारत मजबूती के साथ चीन को उसी की भाषा में जवाब देना जानता है।
आईसीडब्ल्यूएसए से सुदीप ने इस प्रकार के कार्यक्रम के लिए विद्यालय को शुभकामना दी। गोरखपुर विश्वविद्यालय से रक्षा स्टडीज के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर हर्ष कुमार सिन्हा ने बताया कि हमें स्टीरियोटाइप अप्रोच से ऊपर उठकर खुद के विवेक से तथ्यों का आकलन करना चाहिए। दौर बहुत बदल चुका है। आज रूस और पाकिस्तान में भी संबंध बेहतर हो गया है। भारत के पास बहुत विकल्प नहीं है या तो हम रूस और चीन के साथ गठबंधन में शामिल हो, या यूरोपीय देश के नाटो का पार्ट बने, बहुत लंबे समय तक आज के परिवेश में उदासीन रह पाना सरल नहीं है। हमें इस बात का मूल्यांकन करना होगा कि क्या उचित है क्या अनुचित है और भविष्य का भारत कैसा हो? अपने सशक्तिकरण के आधार पर भारत किस प्रकार से चीन से संबंध बना सके? इस पर तटस्थ होकर ऐसी संगोष्ठी में भी विमर्श होना चाहिए।
महाविद्यालय के प्रबंधक राजेश चंद शर्मा ने महाविद्यालय के सभी सेवारत अध्यापक और कर्मचारी गणों को उसके लिए सफल आयोजन के लिए धन्यवाद दिया। इस कार्यक्रम के संयोजक डॉ. शक्ति जायसवाल और आयोजन सचिव डॉ. रत्नाकर पांडेय रहे। अंत में प्राचार्य अभय श्रीवास्तव ने उद्घाटन सत्र में आए सभी विद्वान जनों को आभार ज्ञापित किया। इस कार्यक्रम का संचालन दीपक देव तिवारी ने किया। कार्यक्रम के तकनीकी सत्र में कमर आगा ने ऑनलाइन अपने विचार रखे। चीन की विस्तारवादी नीति की आलोचना करते हुए कहा कि भारत को सचेत रहने की जरूरत है। इस कार्यक्रम में महाविद्यालय सूरतगढ़ के प्राचार्य डॉ. अरविंद सिंह, रवि प्रकाश श्रीवास्तव बुद्ध विद्यापीठ से मुस्तफा, विनोद कुमार, भारत भूषण द्विवेदी, गिरजेश मिश्र आदि गणमान्य उपस्थित रहे।