कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति डॉ. डी.आर. सिंह के निर्देश के क्रम में गुरुवार को आनुवंशिकी एवं पादप प्रजनन विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डॉ. महक सिंह ने किसानों के लिए सूरजमुखी की खेती हेतु एडवाइजरी जारी की है। उन्होंने बताया कि सूरजमुखी महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है। इसके बीजों में 45 से 50% तक तेल की प्राप्ति होती है तथा इसमें प्रोटीन 20% तक पाई जाती है। उन्होंने बताया कि सूरजमुखी के बीजों में विटामिन बी1, बी3, बी6, मैग्नीशियम, फास्फोरस, प्रोटीन जैसे बहुत सारे पोषक तत्व पाए जाते हैं। इसलिए सूरजमुखी का प्रयोग आयुर्वेद में कई तरह की दवाइयों के लिए किया जाता है। सूरजमुखी की बुवाई का उत्तम समय फरवरी का दूसरा पखवाड़ा उचित रहता है।
उन्होंने किसानों को सलाह दी है कि सूरजमुखी की संकुल प्रजातियां जैसे मॉडर्न, सूर्या, पीबी एनएसब-40 तथा संकर प्रजातियां एसएच- 3322, केवीएसएच-1, S1 एमएसएफएच-17, वीएसएफ-1 प्रमुख है। उन्होंने बताया कि बुवाई कतारों में हल् के पीछे चार से पांच सेंटीमीटर गहराई पर करनी चाहिए। लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर होनी चाहिए। डॉ सिंह ने कहा कि 1 हेक्टेयर क्षेत्रफल के लिए संकुल प्रजाति का बीज 12 से 15 किलोग्राम तथा संकर प्रजाति का बीज 5 से 6 किलोग्राम की आवश्यकता होती है। उन्होंने सलाह दी है कि बीज बुवाई के पूर्व 12 घंटे पानी में भिगोकर साए में 3 से 4 घंटे सुखाकर 2 ग्राम कार्बेंडाजिम से शोधित कर बुवाई करे। उन्होंने कहा कि 100 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस एवं 40 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर उर्वरक की आवश्यकता होती है तथा सूरजमुखी की खेती में 2 कुंतल जिप्सम प्रति हेक्टेयर अवश्य प्रयोग करें। यदि किसान वैज्ञानिक विधि से खेती करते हैं तो 28 से 30 कुंतल प्रति हेक्टेयर सूरजमुखी का उत्पादन प्राप्त कर लाभ ले सकते हैं।