कानपुर देहात। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के अधीन संचालित कृषि विज्ञान केंद्र दलीपनगर के वैज्ञानिक डॉ. शशिकांत ने बताया कि पशुओं को भारी बारिश एवं हवाओं से बचने के लिए आश्रय की आवश्यकता होती है। पशुओं में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाने के कारण पशु रोग ग्रस्त हो जाते हैं एवं पशुओं में बाह्य एवं अंतः परजीवी की संख्या बढ़ जाती है तथा मच्छरों का प्रकोप ज्यादा होता है। जिसकी वजह से दुधारू पशु दूध देना कम कर देता है तथा भूख कम लगती है। इसके लिए पशुओं को बारिश प्रारंभ होने से पहले परजीवी नाशक दवाओं का प्रयोग प्रत्येक 3 माह के अंतराल पर करना चाहिए। यह बात कृषि विज्ञान केंद्र दिलीप नगर के पशुपालन वैज्ञानिक डॉ. शशिकांत ने ग्राम वरीयन नेवादा विकासखंड मैथा के के किसानों को पशुपालन गोष्ठी में बताया। साथ ही यह भी बताया कि किसान अपने पशुओं को जब चराने ले जाएं तो घर से साफ पानी पिला कर ले जाएं, जिससे रोग कम लगेगा। किसान चारे की फसल काटने के बाद थोड़ी देर तक चारे को धूप में सुखा लें। जिससे उसमें लगे हानिकारक तत्व नष्ट हो जाए इसके बाद ही पशुओं को खाने को दें।
किसान बारिश के मौसम में अपने पशुओं को कीचड़ में बांध देते हैं, ऐसा नहीं करना चाहिए। इससे पशुओं के खुर में घाव बन जाता है जिससे पशु को चलने फिरने में तकलीफ होती है। जिसकी वजह से भूख लगना बंद हो जाता है। जिससे पशुपालक को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। इसके लिए किसान अपने पशुओं को ऊंचे स्थान पर बांधे जिससे उनके नीचे की अतिरिक्त पानी एवं कीचड़ ना होने पाए। कीचड़ में बांधने से पशुओं में खुरहा रोग की शिकायत होने लगती है एवं थनैला रोग हो जाता है। इस रोग से बचने के लिए किसान पशुओं का दूध निकालने के बाद थन के ऊपर वैसलीन, बोरोलिन, क्रीम इत्यादि का लेप लगा दे। जिससे पशु कीचड़ में बैठने के बाद भी बैक्टीरिया का प्रवेश थन में नहीं होगा और पशु थनैला रोग से ग्रसित होने से बच जायेगा। पशुपालक ध्यान दें, इस मौसम में पशुओं को गलाघोटू रोग से बचने के लिए टीके अवश्य लगवाएं। यह सारी बातें किसानों को गोष्टी में बताई गई। इस मौके पर गांव लगभग 50 महिला एवं किसान मौजूद थे। कार्यक्रम का संचालन अभिषेक ने किया। अंत में गांव के राजू, कृष्ण कुमार, संग्राम सिंह एवं विमला देवी भी अपने पशुओं की समस्याओं का निराकरण की जानकारी ली।