कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डी.आर. सिंह द्वारा जारी निर्देश के क्रम में सोमवार को निदेशक प्रसार/समन्वयक डॉक्टर ए. के. सिंह ने टमाटर की खेती के बारे में बताया कि टमाटर एक लोकप्रिय सब्जी है, इसमें कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, कैल्शियम, आयरन तथा खनिज लवण प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। इसके फल में लाइकोपीन नामक वर्णक (पिगमेंट) पाया जाता है। जिसे विश्व का सबसे महत्वपूर्ण एंटीऑक्सीडेंट बताया जाता है। इन सबके अतिरिक्त कैरोटिनॉइड्स एवं विटामिन सी भी टमाटर में प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। डॉक्टर ए. के. सिंह ने बताया कि टमाटर की रोपाई का सबसे उचित समय अगस्त का महीना होता है। जिससे सर्दियों की शुरुआत में टमाटर निकलना शुरू हो जाते हैं।
डॉ. सिंह ने टमाटर की रोपाई पौधे से पौधे एवं पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 x 60 सेंटीमीटर रखने को कहा पौध रोपाई के बाद सिंचाई कर देने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि यदि मेड बनाकर टमाटर की रोपाई किसान भाई करते हैं तो सिंचाई जल एवं स्थान का उचित उपयोग हो जाता है। टमाटर की फसल में खरपतवार नियंत्रण के बारे में बताया कि कुदाल या खुरपी से निराई करना हितकर होता है। जिससे पौधों की जड़ों में वातायन होता है और फलत अच्छी होती है।
डॉ. सिंह ने बताया कि अंत: फसल के रूप में धनिया, कद्दू वर्गीय, गोभी वर्गीय फसलें ली जा सकती हैं। जिन से अतिरिक्त आय से लाभ होता है। उन्होंने कहा कि रोग और कीड़ों से मुख्य फसल को बचाने के लिए पर्यावरणीय अभियंत्रण के अंतर्गत खेत के चारों तरफ एवं प्रत्येक 10 लाइन मुख्य फसल के बाद एक लाइन गेंदा की रोपाई करें। जिससे कि कि मादा कीट मुख्य फसल को छोड़कर गेंदा के पौधों पर अपना अंडा रखेगी। फल स्वरुप टमाटर की फसल में होने वाली क्षति कम होगी। डॉ. सिंह ने बताया कि टमाटर की औसत उपज 300 से 350 कुंतल प्रति हेक्टेयर होती है। लेकिन अच्छी उत्पादन तकनीक व उन्नत प्रजातियां अपनाने से 800 से 1000 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज किसानों को प्राप्त हो सकती है।