कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के पादप रोग विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एवं जैव नियंत्रण प्रयोगशाला के प्रभारी डॉक्टर वेदरत्न ने बताया कि कृषि एवं उससे जुड़े अन्य कुटीर उद्योग धंधे किसानों की आय का प्रमुख साधन होने के साथ-साथ मानव एवं पशुओं के जीवन का एक प्रमुख अंग है। उन्होंने बताया की फसलों से पैदा होने वाले अनाज, फल-फूल, चारा आदि यदि स्वस्थ होगा तभी इसका कृषकों की आय में वृद्धि के साथ मानव व पशुधन भी स्वस्थ होगा और वातावरण भी स्वच्छ रहेगा।
उन्होंने बताया कि इस समय खरीफ फसलों की बुवाई की तैयारी चल रही है जिसमें प्रमुख रूप से धान की नर्सरी और माह जून से खरीफ़ की अधिकांश फसलों जैसे मक्का, अरहर आदि की बुवाई शुरू हो जाती है एवं धान की रोपाई, बाजरा, उड़द, मूंग की रोपाई – बुवाई के साथ ही सब्जियों एवं फलों की नर्सरी डालने एवं उनकी रोपाई की जाएगी। इसके अतिरिक्त फलदार वृक्षों की रोपाई भी बड़े स्तर पर की जाती है। फसलों में लगने वाले प्रमुख रोगों जैसे जड़ सडन, तना सड़न, झुलसा ,कंडवा पर्ण दाग, आर्द पतन आदि बीमारियां खरीफ़ के मौसम में सभी परिस्थितियों जैसे रोग कारक, पौध की उपलब्धता एवं अनुकूल वातावरण होने के कारण अधिक लगते हैं। फसलों में लगने वाले वाली 70% से अधिक बीमारियां बीज एवं भूमि जनित होती हैं। यदि इन बीमारियों का समय रहते सही प्रबंधन कर लिया जाए तो जहां गुणवत्ता युक्त अधिक उत्पादन होने से कृषकों की आय बढ़ेगी वहीं मानव व पशुधन तथा वातावरण पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा। इन बीमारियों से फसलों को बचाने के लिए अनेकों विधाओं जैसे रोग प्रतिरोधी प्रजातियों का चयन,बीज शोधन एवं कृषक क्रियाएं तथा कृषि रक्षा रसायनो का प्रयोग किया जाता है। रासायनिक कृषि रक्षा रसायनो के दुष्परिणाम को दृष्टिगत रखते हुए प्रयोगों द्वारा यह पाया गया है कि इनकी जगह जैवनियंत्रक का प्रयोग किया जाए तो रसायनों के दुष्परिणाम से बचा जा सकता है। इन जैव नियंत्रक में ट्राइकोडर्मा, जो कि एक जैविक रसायन ही है का प्रयोग रोगों की रोकथाम में काफी प्रभावी पाया गया है।
डॉ वेदरतन ने बताया कि ट्राइकोडर्मा के प्रयोग की तीन विधियां हैं जिनमें की बीज शोधन इस विधि में ट्राइकोडर्मा पाउडर की 4 से 5 ग्राम मात्रा को प्रति किलोग्राम बीज की इधर से बुवाई से पूर्व बीज शोधित किया जाता है विशेषकर रोपाई की जाने वाली सब्जियों जैसे टमाटर, मिर्च, बैंगन, गोभी अथवा फलदार वृक्षों जैसे पपीता,अमरूद आदि की नर्सरी की जड़ों को ट्राइकोडर्मा की 8 से 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में 5 से 6 घंटे तक भिगोकर रखा जाए तत्पश्चात छायादार जगह में सुखाने के बाद ही रोपाई की जाए। उन्होंने बताया कि ट्राईकोडरमा से भूमि शोधन से बहुत बीमारियों से रक्षा होती है। भूमि शोधन के लिए 2.5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को 60 से 65 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद में अच्छी तरह से मिलाकर हल्का नम करके इस ढेर को उसके गीले बोरे से ढककर छायादार जगह पर 1 सप्ताह के लिए रख देना चाहिए। इस क्रिया से ट्राइकोडर्मा के बीजाणु पूरे खाद में मिल जाएंगे ट्राइकोडर्मा खाद की मात्रा को प्रति हेक्टेयर की दर से बुआई से पूर्व खेत की तैयारी के समय में मिला दिया जाए। उन्होंने कहा कि उक्त विधि से ट्राइकोडरमा का प्रयोग करके फसलों की भूमि एवं बीज जनित बीमारियों से फसल को बचाया जा सकता है। इसके परिणाम स्वरूप फसल उत्पादन की लागत में भी गुणवत्ता युक्त अधिक से अधिक किसान भाइयों को आय में वृद्धि होती है। मानव, पशुओं के स्वास्थ्य के साथ ही वातावरण पर भी अनुकूल प्रभाव पड़ेगा।