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कपास नकदी फसल है, इसके उत्पादन से लाभ कमाया जा सकता है: डॉ जगदीश कुमार

कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय कानपुर के कुलपति डॉक्टर डी.आर. सिंह के जारी निर्देश के क्रम में मंगलवार को कपास अनुभाग के प्रभारी अधिकारी डॉक्टर जगदीश कुमार ने बताया कि कपास नकदी फसल है। कपास के रेशे से कंबल, दरियां, फर्श आदि के निर्माण में उपयोग किया जाता है। तथा उन्होंने बताया कि कपास के रेशों से सूती वस्त्र, मेडिकल कार्य हेतु प्रयोग तथा होजरी के सामान का निर्माण किया जाता है। उन्होंने बताया कि कपास से निकलने वाले बिनौलो से पशुओं का आहार भी तैयार किया जाता है। डॉक्टर जगदीश कुमार ने बताया कि उत्तर प्रदेश में कपास का क्षेत्रफल लगभग 9000 हेक्टेयर है प्रदेश में वर्ष 2018-19 में रुई की उत्पादकता 2.5 से 3 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। डॉक्टर जगदीश ने बताया की वर्तमान में जल स्तर की कमी, कपास मूल्य वृद्धि, बेहतर सुरक्षा तकनीक एवं कपास -गेहूं फसल चक्र हेतु अधिक उत्पादन एवं अल्प अवधि की प्रजातियों का विकास कपास की खेती के लिए अनुकूल परिस्थितियां है। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय में किए गए परीक्षणों के अनुसार नई उत्पादन एवं फसल सुरक्षा तकनीक को अपनाकर औसत उपज लगभग 15 से 18 कुंतल प्रति हेक्टेयर प्राप्त कर 20 से 25 डॉक्टर जगदीश कुमारहजार रुपए प्रति हेक्टेयर शुद्ध लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

डॉक्टर जगदीश ने बताया कि कपास की बुवाई का सर्वोत्तम समय 15 अप्रैल से 15 मई तक सर्वोत्तम रहता है। इसके लिए देसी प्रजातियां जैसे आरजे 08,एचडी 123, एचडी 324 तथा अमेरिकन प्रजातियां जैसे विकास, आर एस 810, आर एस 2013, एच एल 1556 प्रमुख है। उन्होंने बताया कि इसकी बुवाई कतारों से कतार 70 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे 30 सेंटीमीटर पर करते हैं। उन्होंने कपास उत्पादक किसान भाइयों को सलाह दी कि उर्वरक प्रयोग हेतु किसान भाई 120 किलो यूरिया तथा 65 किलोग्राम डीएपी का प्रयोग करें । डॉ कुमार ने बताया कि कपास की फसल में खरपतवार प्रबंधन बहुत जरूरी है इसके लिए किसान भाई खुरपी की सहायता से खरपतवार निकालने तथा घने पौधों का विरलीकरण कर दें। उन्होंने बताया कि वर्षा काल के समय खेत में पर्याप्त जल निकास की सुविधा हो जिससे वर्षा का पानी खेत में ठहरने न पाए। कलियां, फूल व गूलर बनते समय खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। कपास की फसल में कीट प्रबंधन के बारे में बताया की गूलर भेदक की रोकथाम के लिए क्विनालफास 25 ईसी 2 लीटर दवा को 600 से 800 लीटर पानी में घोलकर दो-तीन सप्ताह के अंतराल पर तीन या चार बार छिड़काव कर दें। उन्होंने बताया कि कपास की फसल में साकाडू झुलसा एवं अन्य परडी झुलसा बीमारी लगती है जिस की रोकथाम के लिए डेढ़ किलोग्राम ब्लाईटॉक्स 50% डब्ल्यूपी को कीटनाशक दवाइयों के साथ मिलाकर छिड़काव कर दें।

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