डॉ. नीरज कुमार
पूरे देश में कानपुर ही एक ऐसा शहर है जहाँ होली सात दिनों तक मनाई जाती है, हालाँकि तेज़ भागती ज़िन्दगी में अब इसका महत्व थोड़ा कम हो गया है। परन्तु दो दिन रंग खेलने की परंपरा आज भी कायम है, होलिका दहन के ठीक बाद और गंगा मेला वाले दिन। अब बात करते हैं कि इसके पीछे के कारण की….
तो बात सन 1942 की है। जब भारत में स्वतंत्रता आदोलन चरम अपने पर था, तब ब्रिटिश सरकार के तत्कालीन जिलाधिकारी ने कानपुर में होली खेलने पर प्रतिबंध लगा दिया था। यह बात हटिया के नवयुवकों को बुरी लगी, उन्होंने प्रतिबंध को तोड़ते हुए हर्षोल्लास से होली मनाने का फैसला लिया। हटिया के राजन बाबू पार्क में बाबू गुलाबचंद सेठ के नेतृत्व में सैकड़ों की संख्या में युवक एकत्र हुए और होली खेलनी शुरू कर दी।


इतने में ही युवाओं की इस टोली ने वहां तिरंगा फहरा दिया। यह खबर जैसे ही पुलिस तक पहुंची तो तत्कालीन कोतवाल ने पार्क को चारों ओर से घेर लिया और तिरंगा उतरवाने लगे। युवाओं की टोली ने इस बात का विरोध किया तो गुस्साए अंग्रेजों ने युवाओं को पीटा और जेल भेज दिया। बस फिर क्या था मजदूर, साहित्यकार, व्यापारी और आम जनता ने जहां अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया। वही इनके समर्थन में कानपुर शहर और आसपास के ग्रामीण इलाको का भी बाज़ार बंद हो गया। मजदूरों ने फैक्ट्री में काम करने से मना कर दिया। ट्रांस्पोटरों ने चक्का जाम कर सड़कों पर ट्रकों को खड़ा कर दिया। सरकारी कर्मचारी हड़ताल पर चले गए। हटिया बाजार में मौजूद उस मोहल्ले के सौ से ज्यादा घरों में चूल्हा जलना बंद हो गया। मोहल्ले की महिलाएं और छोटे-छोटे बच्चे उसी पार्क में धरने पर बैठ गए। शहर के लोगों ने अपने चेहरे से रंग नहीं उतारा, यूं ही घूमते रहे। लोग दिनभर हटिया बाजार में इक्कठा होते और पांच बजे के बाद ही अपने घरों में वापस जाते।


इस आंदोलन की आंच दो दिन में ही दिल्ली तक पहुंच गई थी। जिसके बाद पंडित नेहरू और महात्मा गांधी ने इनके आंदोलन का समर्थन कर दिया था। आम जनमानस के बढ़ते विरोध के चलते अंग्रेजों ने घुटने टेक दिए और नौजवानों को जेल से रिहा कर दिया गया। अनुराधा नक्षत्र के दिन जब नौजवानों को जेल से रिहा किया जा रहा था तब पूरा शहर उनके लेने के लिए जेल के बाहर इकठ्ठा हो गया था। जेल से रिहा हुए क्रांतिवीरों के चहरे पर रंग लगे हुए थे। जेल से रिहा होने के बाद जुलुस पूरा शहर घूमते हुए हटिया बाज़ार में आकर खत्म हुआ। उसके बाद क्रांतिवीरों ने जमकर होली खेली।
आज भी कानपुर में गंगा मेला के दिन जमकर होली खेली जाती है। ठेले पर होली का जुलूस निकाला जाता है। जो हटिया बाज़ार से शुरू होकर नयागंज, चौक सर्राफा, सहित कानपुर के करीब एक दर्जन पुराने मोहल्ले में धूमता हुआ दोपहर दो बजे तक हटिया के रज्जन बाबू पार्क में आ कर खत्म होता है। शाम को सरसैया घाट पर गंगा मेला का आयोजन किया जाता है। जहां शहर भर लोग इकठ्ठा हो कर एक दूसरे को बधाई देते हैं। जिनमें विभिन्न दलों के राजनेता, साहित्यकार, पत्रकार, अधिवक्ता, अध्यापक, व्यवसायी, प्रशासनिक अधिकारी आदि सभी होते हैं।