कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डी.आर. सिंह ने कहा कि हमारा देश एवं प्रदेश कृषि आधारित है, आज भी 70% जनसंख्या कृषि पर आधारित है और कृषि आधारित जल पर जिसमें 70% सिंचाई भूजल के भरोसे है। इसके लिए हमें सबसे पहले वर्षा जल को संरक्षित करने भूगर्भ जल बढ़ाने हेतु रिचार्ज बढ़ाने जल स्रोतों का पुनरुद्धार करना होगा क्योंकि यह सत्य है कि बिन पानी सब सून। उत्तर प्रदेश में आगरा, बुलंदशहर, फिरोजाबाद, गौतमबुधनगर, हाथरस, मैनपुरी, मेरठ, मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, शामली, संभल, अमरोहा, जौनपुर, प्रतापगढ़, कानपुर नगर एवं कानपुर देहात आदि जनपदों में भू जल संकट निरंतर बढ़ता जा रहा है। उन्होंने कहा जल एवं वायु से ही जलवायु का अस्तित्व है। जलवायु परिवर्तन में जल की समस्या को बढ़ाया है। वनों की कमी पृथ्वी की जल संग्रह संरक्षण क्षमता पर प्रतिकूल असर डालता है परंतु यदि हम खेती की ऐसी तकनीकी प्रबंधन अपनाए जाएं जो जलवायु के लिए मददगार हो वह जल की मात्रात्मक एवं गुणात्मक दोनों का सुधार होगा अभी देश में ज्यादातर सिंचाई डूब प्रणाली के तहत की जाती है। विशेषता नहरी क्षेत्रों में खेतों को लबालब भर दिया जाता है। पौधों को पानी देने हेतु ड्रिप एवं स्प्रिंकलर प्रणाली को अपनाकर हम ‘पर ड्रॉप मोर क्रॉप’ को सिद्ध कर सकते हैं। कम पानी चाहने वाली फसलों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है। ऐसी फसल प्रणाली अपनाना होगा कि खेत की नमी का पूरा उपयोग हो और फसलों की सिंचाई की क्रांतिक अवस्थाएं जान कर सिंचाई करनी होगी।
कुलपति ने कहा हमें जल उपयोग प्रबंधन के साथ जल संरक्षण की ऐसी प्रबंधन अपनाने होंगे जिससे गांव के पानी को गांव क्षेत्र में तथा खेत का पानी खेत में रोका जा सके। गांव व खेत के तालाबों को इस लायक बनाना होगा कि उसमें एकत्र होने वाला पानी संरक्षित बना रहे। जुलाई-अगस्त सितंबर में वर्षा जल के संरक्षण प्रबंधन की जन जागरूकता हेतु विश्वविद्यालय द्वारा समय-समय पर कृषक भाइयों तक तकनीकी पहुंचाने का कार्य किया जा रहा है। उन्होंने कहा भूजल से सिंचाई करने के बजाय वर्षा के पानी का उपयोग क्षमता व प्रबंधन बढ़ाना होगा शुष्क तथा अर्ध शुष्क क्षेत्रों में आज भी आजीविका मुख्य साधन वहां की जल जमीन एवं जंगल तथा जानवर पर निर्भर है प्रकृति का स्वरूप विकृत हुआ है। क्योंकि आबादी बढ़ने के साथ आवश्यकताएं भी बढ़ी हैं। डॉ सिंह ने कहा कि इन सब संसाधनों एवं उपायों को कारगर बनाने हेतु हमें 3 माह जुलाई, अगस्त, सितंबर में जल संरक्षण एवं रिचार्ज के प्रबंधन को अपनाना होगा जो वर्षा हो उस वर्षा की हर बूंद को अपने खेत क्षेत्र (जलागम क्षेत्र) में संरक्षित करने का प्रबंधन अपनाना होगा। उन्होंने अपील की है कि जो जल हमारे पास उपलब्ध है। उस जल का 70% उपयोग कृषि कार्य में होता है अतः हमारी जिम्मेदारी भी अधिक है कि वर्षा जल के संरक्षण के साथ-साथ जल के प्रबंधन एवं सिंचाई दक्षता अपनाना होगा। जल संरक्षण हेतु तकनीकी प्रबंधन में रबी फसलों की कटाई के बाद खेत की गहरी जुताई करना, कटी मेड़ों को बांधना, हरी खाद की बुवाई आदि कार्य के साथ जल संरक्षण हेतु ‘मोटी मेड छोटे खेत’ का प्रबंधन अपनाना होगा। विश्व में खेती में इस्तेमाल होने वाली जमीन 52% से अधिक जल अपवाह के प्रबंधन सही न होने पर छरित होती है। वर्तमान में पर्यावरण से जुड़ी सभी समस्याओं में से भारत के लिए सबसे चिंताजनक एवं चुनौतीपूर्ण है। जल की समस्या वर्ष 2050 तक और पानी की कमी का सामना करना पड़ सकता है। खेती में जल प्रबंधन में क्षेत्र आधारित जल की उपलब्धता विशेष जलवायु को विशेष फसल पद्धति सूक्ष्म सिंचाई टपक सिंचाई व बौछारई को अपनाना होगा। जिसमें हर बूंद पानी का प्रयोग होता है। उन्होंने कहा देश में जल की कमी से अधिक जल के प्रबंधन की आवश्यकता है। जिसको हमारे कृषि विज्ञान केंद्र व विश्वविद्यालय गांव-गांव, खेत-खेत तक तकनीकी पहुंचाने में कार्य कर रहे है। माह जुलाई-अगस्त-सितंबर के 90 दिन का प्रबंधन भूजल स्तर को ऊपर उठा सकता है। जिससे हम बाकी आठ नौ माह पीने का पानी कम नहीं होगा। तालाब,पोखर भरे रहेंगे खेतों में नमी संरक्षित रहेगी परंतु 3 माह जल संरक्षण पर सतर्क रहना है। यदि हम वर्षा जल को संरक्षित कर ले तो पूरे देश-प्रदेश में जलस्तर बढ़ने के साथ-साथ जल उपलब्धता सुनिश्चित रहेगी।