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जैव उर्वरक रासायनिक उर्वरकों के पूरक, कम लागत में अधिक फसल उत्पादन : डॉ. एस. बी. पाल

कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रसार निदेशालय में कार्यरत प्रसार वैज्ञानिक डॉ. एस. बी पाल ने जायद में दलहनी फसलों में जैव उर्वरकों की उपयोगिता विषय पर किसानों हेतु एडवाइजरी जारी की है। उन्होंने बताया कि भारत दलहनी फसलों का प्रमुख उत्पादक देश है दलहनी फसलों में जैव उर्वरकों के प्रयोग करने से वायुमंडल में उपस्थित नत्रजन पौधों को अमोनिया के रूप में सुगमता से उपलब्ध होती है। उन्होंने बताया कि जीवाणु प्राकृतिक हैं इनके प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ती है तथा पर्यावरण पर विपरीत असर भी नहीं पड़ता है। उन्होंने कहा जैव उर्वरक रासायनिक उर्वरकों के पूरक भी हैं। 

डॉक्टर पाल ने सलाह दी है कि जायद फसल में मूंग एवं उड़द की बुवाई का समय चल रहा है इसके लिए किसान बुवाई के पूर्व बीजों को राइजोबियम कल्चर से उपचारित करने के बाद बुवाई करें। डॉक्टर पाल ने कहा कि 10 किलोग्राम बीज के लिए एक पैकेट (दो सौ ग्राम)  मूंग या उड़द के कल्चर को फसल के अनुसार लेकर आधा लीटर पानी में 50 ग्राम गुड़ या चीनी डालकर गर्म करते हैं। पानी के ठंडा होने के उपरांत राइजोबियम कल्चर मिला देते हैं। 10 किलो बीज में हाथों की सहायता से मिलाकर हवा में सूखने देते हैं। तत्पश्चात बीजों की खेत में बुवाई करते हैं। उन्होंने बताया कि प्रयोगों द्वारा सिद्ध हुआ है कि दलहनी फसलें 30 से 50 किलोग्राम तक नाइट्रोजन प्रतिवर्ष प्रति हैक्टेयर भूमि में संचित करती हैं। जिससे किसानों को कम खर्च में अधिक फसल उत्पादन एवं आर्थिक लाभ होता है।

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