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मैंने मरते देखा है गांधी को !

 

 

 

 

के.एम. भाई

 

मैंने मरते देखा है गांधी को !

हर एक चौराहे पे

कभी खाकी वर्दी की आड़ में

तो कभी तड़पती जान में

गांधी को मरते हुए ..

कभी अस्पताल की दर पे

तो कभी न्याय की चौखट पे

गांधी को मरते हुए ..

कभी खुद में कैद बेड़ियों में

तो कभी खुले आसमाँ में

गांधी को मरते हुए ..

कभी भिखारी के रूप में

तो कभी जलती लाशों में

मैंने मरते देखा है गांधी को

हर एक इंसान में

हर एक काल और

हर एक समाज में..

कल भी, आज भी ..

मैंने मरते देखा है गांधी को

कल भी, आज भी ..

 

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