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विश्वविद्यालय के शिक्षकों/अधिकारियों/कर्मचारियों के लिये Code of Conduct की कार्यशाला आयोजित

कानपुर नगर। छत्रपति शाहूजी महाराज विश्वविद्यालय के शिक्षकों/अधिकारियों/कर्मचारियों हेतु Code of Conduct पर एनुअल अवेयरनेस कार्यक्रम विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल में आयोजित किया गया।

इस कार्यक्रम का उद्घाटन विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो0 सुधीर कुमार अवस्थी, कुलसचिव डॉ0 अनिल कुमार यादव, निदेशक, आई.क्यू.ए.सी. प्रो0 संदीप कुमार सिंह, छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो0 नीरज कुमार सिंह एवं कुलानुशासक डॉ0 प्रवीन कटियार द्वारा दीप प्रज्जवलन से हुआ।

विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो0 सुधीर कुमार अवस्थी ने अपने उद्बोधन में कहा कि शिक्षक को संस्थान एवं समाज को बेहतर बनाने के लिये कार्य करना चाहिये। साथ ही समाज के प्रति अपने उत्तरदायित्वों का पालन भी करना चाहिये।
शिक्षकों को चाहिए कि इस बात को स्वीकार करें कि शिक्षा एक जनसेवा है और चलाए जा रहे कार्यक्रमों के बारे में लोगों को जानकारी प्रदान करने के लिए प्रयास करें। समाज में शिक्षा में सुधार करने और समाज के नैतिक और बौद्धिक जीवन को सुदृढ़ करने के लिए कार्य करें। सामाजिक समस्याओं सेे अवगत हों और ऐसी क्रियाकलापों में भाग लें जो समाज की प्रगति और कुल मिलाकर देश की प्रगति में सहायक हो। नागरिक के कर्तव्यों का निवर्हन करें, सामाजिक क्रियाकलापों में भाग लें और सरकारी सेवाओं के उत्तरदायित्वों में सहायता करें। ऐसी क्रियाकलापों में भाग लेनेे से और सदस्य बनने या किसी भी प्रकार से सहायता करने से बचें जो विभिन्न समुदायों, धर्मों या भाषाई समूहों में नफरत और दुश्मनी को बढ़ावा देती हो, परंतु राष्ट्रीय एकता के लिए सक्रिय होकर कार्य करें।

शिक्षकों को Code of Conduct पर जानकारी देते हुये विश्वविद्यालय की आई.क्यू.ए.सी. के निदेशक प्रो0 संदीप कुमार सिंह ने बताया कि एक शिक्षक को ऐसी जिम्मेदारी भरे आचरण तथा व्यवहार का पालन करना चाहिए जैसा कि समदुाय उनसे आशा करता है। उन्हें अपने निजी मामलों का इस प्रकार से प्रबध्ंन करना चाहिए जो कि पेशे की प्रतिष्ठा के अनुरूप हो। अध्ययन और शोध के माध्यम से लगातार पेशेवर विकास जारी रखने चाहिए। ज्ञान के क्षेत्र में योगदान देनेे के लिए पेशेवर बैठकों, संगोष्ठियों सम्मेलन इत्यादि मे भागीदारी करके मुक्त और मैत्रीपूर्ण विचार व्यक्त करने चाहिए। पेशेवर सगंठनों में सक्रिय सदस्यता को बनाए रखना चाहिए और उनके माध्यम से शिक्षा और व्यवसाय को बेहतर बनाने का प्रयास करना चाहिए। विवेकपूर्ण और समर्पण भावना से शिक्षण, अनुशिक्षण, प्रायोगिक ज्ञान, संगोष्ठियों और शोध कार्य के रूप में अपने कर्तव्यों का निष्पादन करना चाहिए। शिक्षण और शोध में साहित्य चोरी और अन्य अनैतिक व्यवहार में शामिल नहीं होना और उन्हें हतोत्साहित करना चाहिए। विश्वविद्यालय के अधिनियम, सांविधि और अध्यादेशों का पालन करना चाहिए और विश्वविद्यालय के आदर्शों विजन, मिशन, सांस्कृतिक पद्धतियों और परंपराओं का आदर करना चाहिए।

महाविद्यालय और विश्वविद्यालय के शैक्षणिक दायित्वों से संबंधित कार्यों का क्रियान्वयन करने में सहयोग और सहायता प्रदान करना जैसे कि प्रवेश हेतु आवेदनों का मूल्यांकन करने में सहायता करना, छात्रों को परामर्श देना और उनका मागदर्शन और निगरानी करना, पर्यवेक्षण और मूल्यांकन करने सहित विश्वविद्यालय और महाविद्यालय में परीक्षाएं आयोजित कराने में सहायता करना और
सामुदायिक सेवा सहित सह-पाठ्यचर्या और पाठयेत्तर कार्यकलापों के विस्तार में भागीदारी करना। उन्होंने कहा कि शिक्षक का कार्य एक बहुत ही पुनीत कार्य है। शिक्षक को भगवान कृष्ण की भांति विद्यार्थी का सारथी बनकर उसका उत्तम मार्गदर्शन करना चाहिये। शिक्षकों को आपस में सद्भावपूर्ण वातावरण रखना चाहिये। एक शिक्षक को किसी दूसरे शिक्षक की बुराई या उसे नीचा नहीं दिखाना चाहिये। शिक्षक और छात्र के मध्य रिश्ते के संबंध में उन्होंने बताया कि एक शिक्षक को छात्रों को विचार व्यक्त करने के उनके अधिकारों और प्रतिष्ठा का आदर करना चाहिए। छात्रों के धर्म, जाति, लिंग, राजनीति, आर्थिक, सामाजिक और शारीरिक गुणों को ध्यान में नहीं रखते हुए उनसे निष्पक्ष और बिना भेद भाव व्यवहार करना चाहिए।

छात्रों के व्यवहार और क्षमताओं में अंतर को पहचानना और उनकी व्यक्तिगत आवश्यकताओं को पूरा करने का प्रयास करना चाहिए।
छात्रों को उनकी उपलब्धियों में और सुधार करने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए, उनके व्यक्तित्व का विकास करना चाहिए और सामुदायिक कल्याण में योगदान देने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए। छात्रों में वैज्ञानिक मनोवृत्ति, जिज्ञासा का भाव और लोक तंत्र, देश भक्ति, सामाजिक न्याय, पर्यावरण संरक्षण, और शातिं के आदर्श का संचरण करना चाहिए। छात्रों के साथ सम्मान से व्यवहार करना और किसी भी कारण के लिए किसी के साथ प्रतिशोधात्मक तरीके से व्यवहार नही करना चाहिए। गुणों का मूल्यांकन करने में छात्र की केवल उपलब्धियों पर ध्यान देना चाहिए। कक्षा के समय के बाद भी छात्रों के लिए स्वयं को उपलब्ध कराना और बिना किसी लाभ और पुरस्कार के छात्रों की सहायता और उनका मार्गदर्शन करना चाहिए। छात्रों में हमारी राष्ट्रीय विरासत और राष्ट्रीय उद्देश्यों की समझ विकसित करने में सहायता करना चाहिए। अन्य छात्रों, सहपाठियों अथवा प्रशासन के विरुद्ध छात्रों को उत्तेजित नहीं करना चाहिए।

विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ0 अनिल कुमार यादव एवं उप कुलसचिव श्री अजय गौतम ने विश्वविद्यालय के प्रशासनिक अधिकारियों एवं कर्मचारियों को Code of Conduct की जानकारी दी। धन्यवाद ज्ञापन विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो0 नीरज कुमार सिंह ने किया। कार्यक्रम का संचालन कुलानुशासक डॉ0 प्रवीन कटियार ने किया।

इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के शिक्षकगण/अधिकारीगण/कर्मचारीगण उपस्थित थे।

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