कानपुर। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (भाकृअनुप) अटारी जोन 3 कानपुर द्वारा संरक्षित कृषि पर राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। निदेशक डॉ.अतर सिंह द्वारा बताया कि संरक्षित कृषि के अन्तर्गत ग्रीन हाउस व पॉली हाउस आदि के माध्यम से घटती जमीन एवं वातावरण के बदलते परिवेश में सब्जी का उत्पादन व रोपण सामग्री आदि का उत्पादन किया जाता है। केवीके अपने स्तर पर पॉली हाउस तकनीक किसानों को बताएं जिससे कृषकों को काफी लाभ होगा। जल, जमीन, जंगल की उपयोगिता के आधार पर प्राकृतिक संसाधन संरक्षण करके ग्रीन हाउस तकनीकी से गुणवत्तायुक्त एवं वर्ष भर उत्पादन व उत्पादकता बढ़ाकर एक-एक पानी की बूँद की उपयोगिता का प्रयोग करें। पानी के संरक्षण के साथ ही आत्मनिर्भरता मेें एक माडल किसानों को स्वावलंबी बना सकता है। किसानों की आय 3-4 गुना बढ़ायी जा सकती है।
इस अवसर पर प्रधान वैज्ञानिक डॉ.राघवेन्द्र सिंह द्वारा संरक्षित कृषि का परिचय व सफलता की कहानी विषय पर प्रस्तुतीकरण किया गया तथा लद्दाख क्षेत्र में संरक्षित कृषि की सफलता की कहानी बतायी गयी। प्रधान वैज्ञानिक अवनी कुमार, भाकृअनुप-आई.ए.आर.आई, पूसा नई दिल्ली, द्वारा ‘संरक्षित कृषि की समस्यायें व संभावनायें’ विषय पर प्रस्तुतिकरण किया गया और उनके द्वारा संरक्षित कृषि से जुड़े स्वयं के अनुभव तथा सब्जियों की पैदावार, गुणवत्तायुक्त तथा वर्ष भर उपलब्धता के आदर्श माडल और टमाटर, खीरा, ककड़ी उत्पादन के अनुभव साझा किये गये। उन्होंने बताया कि इस पद्धति के माध्यम से विभिन्न बाधाओं से पौधों की की रक्षा होती है इस कारण इसे संरक्षित कृषि कहते हैं। किसानों द्वारा तकनीक सीखकर अच्छा उत्पादन करके लाभ उठाया जा रहा है। इसमें ड्रिप सिंचाई पद्धति काफी उपयोगी है। प्रधान वैज्ञानिक डॉ.अनन्त बहादुर द्वारा ‘संरक्षित कृषि के लिये ड्रिप सिंचाई तकनीक’ विषय पर प्रस्तुतीकरण दिया गया। उन्होंने इसके लिये प्रयुक्त तकनीक व उपकरणों की विस्तृत जानकारी प्रदान की।
प्रधान वैज्ञानिक डॉ. हरे कृष्णा द्वारा ‘शहरी सब्जियों की खेती-शहरों में खाद्य और पोषण संबंधी प्रतिभूतियों को बढ़ाना’ विषय पर प्रस्तुतिकरण दिया गया। वेबिनार में प्रस्तुतिकरण के बाद प्रतिभागियों ने अपने प्रश्न पूछे जिनका उत्तर विशेषज्ञों द्वारा दिया गया।
वेबिनार में भाकृअनुप-अटारी कानपुर, पटना, लुधियाना, जबलपुर व जोधपुर जोन के कृषि विज्ञान केन्द्रों के वैज्ञानिकों, शोधार्थियों व कृषकों ने प्रतिभाग किया। अंत में प्रधान वैज्ञानिक डॉ.एस.के. दुबे द्वारा सभी प्रतिभागियों को धन्यवाद ज्ञापन किया गया।