Breaking News

विश्व रंगमंच दिवस: ज़िंदगी को जानने, समझने और जीने का हुनर देता है रंगमंच

ड़ॉ. नीरज सचान 

रंगमंच से लोगों का पुराना नाता रहा है। जिसने भी रंगमंच के तिलिस्म में कदम रखा, रंगमंच उसकी रग-रग में उतर गया। वो दूर जाकर भी कभी रंगमंच से दूर नहीं हो सका। ठीक वैसे ही, जैसे किसी मयकश के हलक से उतरकर कोई मय, उसकी रग-रग में फैली और दिल-ओ दिमाग़ पर तारी हो गई। ठीक वैसे ही, जैसे ज़िंदगी के किसी मोड़ पर एक मासूम इश्क़ किसी लैला, किसी शीरीं या किसी सोहणी की शक्ल में किसी क़ैस, किसी फ़रहाद या किसी महिवाल से मिला और उनकी जिंदगी बन गया।

क्या कहते हैं रंगकर्मी 

दरअसल, रंगमंच को जीने वाले, इसे जिंदगी जीने का सलीक़ा कहते हैं। इसका सम्मोहन अद्भुत है। एक रंगकर्मी होने के नाते मेरा यह मानना है कि रंगमंच ज़िंदगी को ज़िंदगी की तरह जीने और समझने का मौका देता है। रंगकर्मी अज़हर अली ने बताया कि रंगमंच के पथ पर चलकर जीवन को जानने, समझने और जीने का हुनर आता है। एक रंगकर्मी के रूप में दूर खड़े होकर ख़ुद को भी एक विश्लेषक की नजर से देख सकते हैं। अभिनेता अजय सिंह के अनुसार, थिएटर से जुड़ा शख्स अपने जीवन को बहुकोणीय स्तर पर जाकर देख सकता है। रंगकर्म से जुड़े लेखक, निर्देशक और दूरदर्शन केंद्र लखनऊ में कार्यक्रम अधिशासी, शिशिर सिंह के अनुसार, एक मंच हमारे अंदर भी है। जिस पर सदा ही रंग बिखरे रहते हैं बाहरी संसार के। उन्हीं रंगों को जब हम बाहर संजो कर सजाते हैं तो जीवंत हो उठता है रंगमंच, खिल उठते है चमत्कारी आयाम। अभिनेता और निर्देशक जिया अहमद खान कहते हैं, आज रंगमंच वृहद स्वरुप में आ चुका है। वैश्विक स्तर पर भाषा और सीमाओं का बैरियर खत्म हो गया है। वरिष्ठ रंगकर्मी नरेंद्र पंजवानी ने कहा कि, पूरा संसार ही एक रंगकर्म है, जहां हम ईश्वर के निर्देशन के जीवन के विभन्न रंगों में डूबे रहते हैं। हमें अपनी मर्यादा में रहकर अपने किरदार निभाने चाहिए।

विश्व रंगमंच कब शुरू हुआ 

विश्व रंगमंच दिवस का शुभारम्भ 27  मार्च 1961 को इंटरनेशनल थियेटर इंस्टिट्यूट द्वारा किया गया था। तब से प्रतिवर्ष 27 मार्च को विश्व थिएटर समुदाय इस दिन कई अंतर्राष्ट्रीय रंगमंचीय कार्यक्रम आयोजित करता है। रंगमंच से जुडी हस्तियों के संदेश पढ़े जाते हैं। मुख्य कार्यक्रम इंटरनेशनल थियेटर इंस्टिट्यूट के मंच पर आयोजित किये जाते हैं। इंटरनेशनल थियेटर इंस्टीट्यूट अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन है, जिसकी स्थापना यूनेस्को द्वारा सन 1948 में प्राग चेक गणराज्य में की गयी थी।

नाट्यकला का विकास भारत में हुआ था 

ऐसा माना जाता है कि नाट्य कला का विकास सर्वप्रथम भारत में ही हुआ। ऋग्वेद के कतिपय सूत्रों में यम और यमी, पुरुरवा और उर्वशी आदि के कुछ संवाद हैं । इन संवादों में लोग नाटक के विकास का चिह्न पाते हैं। इन्हीं संवादों से प्रेरणा ग्रहण कर नाटक की रचना की गयी और नाट्यकला का विकास हुआ। यथासमय भरतमुनि ने उसे शास्त्रीय रूप दिया। भरत मुनि ने अपने नाट्यशास्त्र में नाटकों के विकास की प्रक्रिया को इस प्रकार व्यक्त किया है: नाट्यकला की उत्पत्ति दैवी है, अर्थात् दुःख रहित सतयुग बीत जाने पर त्रेता युग के आरंभ में देवताओं ने स्रष्टा ब्रह्मा से मनोरंजन का कोई ऐसा साधन उत्पन्न करने की प्रार्थना की जिससे देवता लोग अपना दु:ख भूल सकें और आनंद प्राप्त कर सकें। फलत: उन्होंने ऋग्वेद से कथोपकथन, सामवेद से गायन, यजुर्वेद से अभिनय और अथर्ववेद से रस लेकर, नाटक का निर्माण किया। विश्वकर्मा ने रंगमंच बनाया  इत्यादि।

ख़ैर नाटक का विकास जैसे भी हुआ हो, पूरे विश्व में रंगमंच हमेशा से अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है। रंगमंच के कलाकार विभिन्न ज्वलंत समस्याओं को नाटकों के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाते हैं, पौराणिक प्रस्तुतियों से रूबरू कराते हैं, हमारी लोक संस्कृति को राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाते हैं। रंगमंच और इसके कलाकार एक प्रकार से हमारे सांस्कृतिक प्रतिनिधि और परम्पराओं के वाहक-प्रचारक होते हैं।

About rionews24

Check Also

अगेती अरहर की वैज्ञानिक खेती

डॉ. अखिलेश मिश्रा, प्राध्यापक (शस्य विज्ञान), दलहन अनुभाग, चंद्र शेखर आज़ाद कृषि एवं प्रोद्योगिक विश्वविद्यालय, …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *