कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डी.आर.सिंह की अध्यक्षता में गुरुवार को शोध निदेशालय के अंतर्गत संचालित विभिन्न एक्रिप्, तदर्थ, एफिकेसीय टेस्टिंग एवं नान प्लान परियोजनाओं की उपलब्धियों का गहनता से अनुश्रवण किया गया। बैठक में निदेशक शोध डॉ. एच. जी. प्रकाश द्वारा विश्वविद्यालय के कुलपति का स्वागत करते हुए शोध निदेशालय के अंतर्गत संचालित विभिन्न योजनाओं की उपलब्धियों का प्रस्तुतीकरण किया।
इस अवसर पर निदेशक शोध ने बताया कि वर्ष 2020-21 में अधिक उत्पादन देने वाली व कम समय में पकने वाली तीन फसल प्रजातियों का विकास किया गया। जिसमें सरसों की आजाद महक तेल उत्पादन क्षमता 42%, तोरिया की आजाद चेतना तेल उत्पादन क्षमता 42% और अलसी की प्रजाति अपर्णा जिसमें ओमेगा- 3, 54% है। तीन प्रजातियों का प्रस्ताव शीघ्र केंद्रीय बीज समिति को भेजा जा रहा है जिनमें मसूर की शेखर- 8 जो बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए चिन्हित हुई है। गेहूं की के-1616, जो एक पानी के लिए चिन्हित हुई है तथा जौ की के-1425 जो ऊसर भूमियों के लिए विकसित की गई है। निदेशक शोध ने बताया कि विगत वर्ष में फसल उत्पादन की 11 तकनीक, तथा जलवायु परिवर्तन की दो, पांच पोस्ट हार्वेस्ट प्रसंस्करण एवं मूल्य संवर्धन तकनीकों का विकास हुआ है। इस अवसर पर उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा विभिन्न विषयों के कृषि विज्ञान को विद्यार्थी, वैज्ञानिक एवं कृषक केंद्रित बनाए जाने के लिए तीन मोबाइल ऐप भी विकसित किए गए हैं। जिनमें क्रॉसिंग डाटा बुक, दलहन बीज उत्पादन कृषकों एवं बीज उत्पादक उद्यमियों हेतु एवं मौसम की क्षण-प्रतिक्षण की जानकारी हेतु सीएसए वेदर मोबाइल ऐप गूगल स्टोर पर उपलब्ध है। उन्होंने प्रगति आख्या प्रस्तुत करते समय बताया कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा प्रदत्त कास्ट एनसी योजना के अंतर्गत 9 राष्ट्रीय, 1 अंतर्राष्ट्रीय, 9 बेबीनार, 19 लेक्चर सीरीज आयोजित किए गए हैं। जिनमें देश के विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों के 4385 संकाय सदस्यों एवं विद्यार्थियों ने प्रतिभाग किया। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति के अंतर्गत 13 सेमिनार आयोजित किए गए। विश्वविद्यालय में न्यूट्री सीरियल पर व चारे फसलों तथा उसर भूमि एवं जैविक खेती पर विभिन्न शोध कार्यक्रम संचालित किए गए हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में शिक्षा, शोध और प्रसार कार्यक्रमों को बढ़ावा देने के लिए कामधेनु चेयर एवं कृषि विपणन के क्षेत्र में प्रोफेसर चेयर की स्थापना की गई है।
वर्ष 2021-22 के कार्य योजना को प्रस्तुत करते हुए निदेशक शोध ने बताया कि विश्वविद्यालय के कार्य क्षेत्र में आने वाले प्रदेश के सभी जनपदों में कृषि उत्पादन में आ रहे अवरोधों को चिन्हित कर कार्य किया जाएगा। उनके अनुसार विश्वविद्यालय के विकसित शोध संसाधनों का उपयोग कर प्रदेश की उत्पादन व उत्पादकता में योगदान दिया जाएगा। डॉ. प्रकाश ने बताया कि दक्षिण-पश्चिम अर्ध शुष्क जलवायु क्षेत्र के लिए चिन्हित कृषि उत्पादन अवरोध जैसे- खारा पानी, लवणीय भूमि, बीहड़ क्षेत्र तथा मध्य मैदानी उत्तर प्रदेश क्षेत्र के लिए चयनित छारीय भूमि, अधिक जल दोहन, भूमि में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी तथा फसलों में कीट पतंगों का प्रकोप एवं जैविक खेती पर अध्ययन कार्य कर कृषि तकनीक मॉडल विकसित किए जाएंगे। इस अवसर पर कुलपति डॉक्टर डी. आर. सिंह द्वारा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा लिखित प्रैक्टिकल ऑफ मैन्युअल हॉर्टिकल्चर एंड वेजिटेबल्स ऑन वेजिटेबल्स नामक पुस्तक का विमोचन किया गया। कुलपति डॉक्टर डी.आर. सिंह ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में शोध निदेशालय के शोध कार्य एवं अन्य गतिविधियों को सराहा। इस अवसर पर सभी निदेशक, विभागाध्यक्ष, प्रोफेसर एवं संकाय सदस्य उपस्थित रहे।