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जरूरी है वर्षा जल का संचयन एवं उसका उचित प्रबंधन : डॉ. वी.के. कनौजिया

कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डी.आर. सिंह द्वारा वैज्ञानिकों को जारी निर्देश के क्रम में शनिवार को अनौगी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. वी.के. कनौजिया ने बताया कि जल ही जीवन है, जल जीवन का अमृत है। इसके बिना पृथ्वी पर जीवन की कल्पना करना भी संभव नहीं है। आज समय की मांग है कि हम सभी को वर्तमान व भावी पीढ़ियों के लिए जल संरक्षण व उसके उचित प्रबंधन पर तेजी से काम करना होगा।

डॉक्टर कनौजिया ने बताया कि भारत में 85% पानी कृषि कार्य, 10% उद्योगों और 5% घरेलू कार्यों में इस्तेमाल किया जाता है। उन्होंने बताया कि देश में पानी की मांग 2030 तक दोगुना होने की संभावना है। आंकड़ों के अनुसार देश में वर्ष 1994 में पानी की उपलब्धता प्रति व्यक्ति 6000 घन मीटर थी, जो वर्ष 2000 में 2300 घन मीटर रह गई तथा वर्ष 2025 में इसके घटकर 1600 घन मीटर रह जाने  का अनुमान है। उन्होंने कहा देश में होने वाली कुल वर्षा का 5 प्रतिशत जल संचयन कर लिया जाए तो देश के करोड़ों लोगों,कृषि व उद्योगों की वर्ष भर की पानी की आवश्यकता को पूरा किया जा सकता है। डॉक्टर वीके कनौजिया ने कहा वर्षा जल के संचयन यह सबसे उपयुक्त समय है। इस मौसम में लगभग 75 दिन ही वर्षा होती है जिसमें लगभग 85 से 90% भाग बरस जाता है तथा वर्ष के शेष महीनों में छुटपुट वर्षा से काम चलाना पड़ता है। वर्षा के दौरान आवश्यकता से अधिक जल की उपलब्धता का संचयन हमारे उज्जवल भविष्य की आवश्यकता है। देखा जाये तो फसलों, वनस्पतियों तथा मत्स्य पालन को छोड़कर, वर्षा जल का सीधा उपयोग कम ही जगह पर होता है। परंतु तालाबों, नदियों, झरनों, बांधों, आदि में जल का का इकट्ठा होना हमारी जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा है। इन सबके बावजूद वर्षा जल का बहुत बड़ा हिस्सा हमारे घरों, खेतों, जंगलों, आदि से बहकर ऐसे दूरस्थ स्थानों पर चला जाता है जो हमारे उपयोग में नहीं आता तथा भूजल के स्तर को भी बढ़ाने में मदद नहीं करता। इस बहने वाले जल को  रोकना अति आवश्यक है। वर्षा जल जहां गिरे वही संचित कर लिया जाना एक आदर्श स्थिति है। सामूहिक रूप से जल के संरक्षण के उपायों को अपनाया जाना चाहिए क्योंकि हम सब स्वतंत्र रूप से भूजल का दोहन बिना कोई शुल्क अदा किये कर रहे हैं। हमें अपने खेतों, तालाबों, जलाशयों, नालों, बेकार पड़ी भूमियों आदि में जल रोकने व इकट्ठा करने के अलावा बड़े घरों और प्रतिष्ठानों में छोटे – छोटे जलाशय बनाकर वर्षा जल को इकट्ठा को करना चाहिए, जो धीरे-धीरे रिस कर भूजल में पहुंच जाएगा।

मृदा वैज्ञानिक डॉक्टर खलील खान ने सलाह दी है कि खेतों की मेंड़ो को ऊंचा तथा ढालू खेतों को छोटे-छोटे टुकड़ों में बांटकर जल को जगह-जगह रोक देना चाहिए। यह सबसे सरल तथा प्रभावी उपाय है। इससे मात्र जल का संरक्षण ही नहीं होता बल्कि मृदा क्षरण को भी रोकता है, परिणाम स्वरूप फसलों की उपज बढ़ती है। जल संकट को आने से रोकने के लिए घर- घर में छोटे जलाशय बना कर छतों का पानी इकट्ठा करें। खेतों की मेड़ों को मजबूत और ऊंचा करें। फसलों को मेड़ों पर बोयें। अधिक से अधिक दलहनी फसलें उगाएं। बृहद स्तर पर वृक्षारोपण करें। जलाशयों व तालाबों को गहरा किया जाना चाहिए तथा नालों को जगह-जगह बांध कर जल रोकें जिसे बाद में उपयोग लिया जा सके। कम पानी चाहने वाली फसलें उगाएं। जमीन से निकाले गए जल का सदुपयोग किया जाना अति आवश्यक है। जिससे आने वाले समय में पानी के लिए भटकना न पड़े।

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