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दलहनी फसलों का बुवाई पूर्व उपचार इस प्रकार करें : डॉ. यू. के. त्रिपाठी

कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डी.आर.सिंह द्वारा जारी निर्देश के क्रम में शनिवार को पादप रोग विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष डॉ. यू.के.त्रिपाठी ने रबी फसलों में उगाई जाने वाली दलहनी फसलों (चना, मसूर, मटर) में रोगों की रोकथाम हेतु किसान के लिए एडवाइजरी जारी की। उन्होंने बताया की दलहनी फसलों में फफूंदी एवं जीवाणु जनित रोगों जैसे उकठा, जड़ सड़न, झुलसा, रतुआ, चूर्णित आशिता इत्यादि रोगों का प्रकोप होता है। 

डॉक्टर त्रिपाठी ने बताया कि किसान बुवाई से पूर्व मृदा का शोधन अवश्य करें इसके लिए 1 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा को 25 किलोग्राम सड़ी हुई गोबर की खाद में मिलाकर बुवाई के 15 दिन पूर्व शाम के समय खेत में मिलाकर हल्की सिंचाई कर दें। यह मात्रा 1 हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होगी। उन्होंने उकठा रोग के प्रबंधन के लिए बताया कि गर्मी में गहरी जुताई अवश्य करे तथा बुवाई के पूर्व 5 ग्राम ट्राइकोडरमा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर दें। दलहनी फसलों में झुलसा रोग के प्रबंधन के बारे में बताया कि 2 ग्राम कार्बेंडाजिम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बुवाई करने पर बीज शोधित कर बुवाई करें। जिससे झुलसा रोग नियंत्रित रहता है। मसूर की फसल में रतुआ रोग की नियंत्रण के खड़ी फसल में 2 ग्राम मैंकोजेब 700 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करने से लाभ होता है। 

डॉक्टर त्रिपाठी ने यह भी बताया कि मटर की फसल में चूर्णित आसिता रोग के नियंत्रण हेतु कैराथेन 3 ग्राम 700 लीटर पानी में घोलकर खड़ी फसल में प्रयोग करने से लाभ होगा। इसके अतिरिक्त फसल चक्र किसान अवश्य अपनाएं जिसमें गन्ना, सरसों, अलसी या गेहूं की खेती को किया जा सकता है। क्योंकि एक ही प्रकार की फसलें बार-बार एक ही खेत में करने से रोग और कीड़ों की संभावना ज्यादा रहती है। उन्होंने बताया कि इस प्रकार किसान अपनी दलहनी फसलों को रोग मुक्त कर सकते हैं तथा दलहनी फसलों से आशातीत उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। 

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