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कुपोषण दूर करने में मददगार है मक्का : डॉ. एच. जी. प्रकाश

कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. डी.आर.सिंह के द्वारा जारी निर्देश के क्रम में सोमवार को विश्वविद्यालय के शोध निदेशालय के अंतर्गत संचालित कास्ट एंड सी परियोजना के अंतर्गत विश्वविद्यालय द्वारा गोद लिए गए जैव संवर्धित गांव अनूपपुर में निदेशक शोध डॉ. एच. जी. प्रकाश ने उपस्थित वैज्ञानिकों के साथ गांव के लोगों में कुपोषण दूर करने के लिए खरीफ मक्का के बीजों को 87 किसानों को वितरण किया गया। निदेशक शोध ने कहा है कि खरीफ की फसलों में मक्का का महत्वपूर्ण स्थान है। 

उत्तर प्रदेश में खरीफ मक्का का क्षेत्रफल लगभग 6.74 लाख हेक्टेयर है तथा उत्पादन 13.92 लाख मीट्रिक टन है जबकि औसत उत्पादकता 20.67 कुंतल प्रति हेक्टेयर है एवं कानपुर मंडल में मक्का का क्षेत्रफल लगभग 7500 हेक्टेयर है। डॉक्टर एच.जी. प्रकाश ने कहा कि अधिकतर किसान भाई खरीफ मक्का की बुवाई भुट्टो के लिए करते हैं जिसे बाजार में बेचकर अच्छी आमदनी प्राप्त करते हैं। इस समय किसान भाई खरीफ मक्का की बुवाई कर रहे हैं। उन्होंने कहा है कि खरीफ मक्का का प्रबंधन यदि अच्छी प्रकार किया जाए तो एक हेक्टेयर क्षेत्रफल से लगभग 60 से 70 कुंतल दाना तथा 220 से 230 कुंतल हरा भुट्टा प्राप्त किया जा सकता है तथा इतना ही हरा चारा पशुओं के लिए मिल जाता है। जिससे गर्मियों में हरा चारा की कमी को पूरा किया जा सकता है। फसल प्रबंधन के क्रम में डॉ. प्रकाश ने बताया कि मक्का की बुवाई के 15 से 20 दिनों के बाद पहली सिंचाई अवश्य कर दें, तत्पश्चात अगली सिंचाई आवश्यकता अनुसार 10 से 15 दिन के अंतराल पर करते रहें। खरीफ मक्का में खरपतवारो के नियंत्रण के लिए खुरपी की सहायता से निराई कर दें। जिससे खरपतवार प्रबंधन हो जाता है तथा मिट्टी में श्वसन क्रिया बढ़ने से पौधे स्वस्थ हो जाते हैं उन्होंने यह भी कहा कि उर्वरक  प्रबंधन के लिए खड़ी फसल में यूरिया का छिड़काव 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पहली सिंचाई के बाद ओट आने के बाद सायं कॉल करें फसल सुरक्षा के लिए यदि मक्का में तना छेदक /शिरा बेधक कीट लगा हुआ है तो इसके नियंत्रण के लिए 25 ई.सी. 1 लीटर डाईमेथोएट या क्यूनालफास 25 ई.सी. डेढ़ लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 400 लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें यदि यह दवा बाजार में उपलब्ध ना हो तो कार्बोफ्यूरान 3G की 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से बुरकाव कर दें। पत्तियों या पौधों पर किसी प्रकार का कोई रोग  दिखाई पड़े तो जीनेव या मैंकोजेब 75% 2 किलोग्राम 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव कर दें। कीट या रोग फसल में पुनः दिखने पर 15 दिन के बाद छिड़काव कर दें। डॉक्टर एच. जी. प्रकाश ने कहा कि मक्का की फसल में जीरा या भुट्टा बनते समय मृदा में नमी का ध्यान जरूर रखा जाए। उन्होंने कहा कि आमदनी बढ़ाने के लिए मक्का की दो लाइनों के बीच में लोबिया की बुवाई कर दें। जिससे कीट पतंगों का प्रकोप कम होता है तथा अतिरिक्त आमदनी प्राप्त हो जाती है। इसके अतिरिक्त उन्होंने कहा कि इसमें प्रोटीन 9 से 11% तथा स्टार्च 73 से 75% एवं कार्बोहाइड्रेट 70 से 75% तक पाया जाता है। इसके साथ ही  मक्का में मिनरल, जिंक ,मैग्नीशियम, कॉपर, आयरन व फास्फोरस एवं कैल्शियम का अच्छा स्रोत है। जो कि स्वास्थ्य की दृष्टि से काफी लाभकारी है। मक्का सुपाच्य भोजन भी है।  

इस अवसर पर कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं नोडल अधिकारी डॉ. अशोक कुमार, डॉक्टर भानु प्रताप सिंह, डॉ. खलील खान, डॉ. अरुण कुमार सिंह, डॉ. अरविंद कुमार, डॉक्टर चंद्रकला यादव सहित गांव के सैकड़ों पुरुष एवं महिला किसान उपस्थित रहे।

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