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क्या आम जनता द्वारा भी पत्रकारों के पीटे जाने का वक्त नजदीक आ रहा है?

पवन सिंह
देश की मीडिया ने अपनी दुर्गति खुद की है। कहते हैं हर आदमी की इज्जत उसके खुद के साथ में होती है तो यही उक्ति मीडिया संस्थानों पर भी लागू होती है। मीडिया पर या पत्रकारों पर हमला कोई नई बात नहीं है लेकिन जब इसमें एजेंडा फिट हो जाता है तो वह पत्रकारिता नहीं रह जाती दलाली या ‘चरणधूलिधरण’ कही जाती है।

2014 से पहले जो मीडिया महालेखाकार परीक्षक द्वारा जारी एक-एक पन्ने पर चैनलों पर बहस करता था आज खामोश है? आज भी महालेखाकार परीक्षक कार्यालय रिपोर्ट जारी करता है…नोट बंदी के पूरी तरह फ्लोयोर हो जाने पर मीडिया ने एक भी रिपोर्ट नहीं की…भडैंती की हद यह रही कि 2000 की नोट में ऐसी नैनो टेक्नोलॉजी खोज निकालगी गई जो सीधे सैटेलाइट को सिग्नल भेज रही थी और डौंडियाखेड़ा की खुदाई में सोना तलाश रही थी….एक बार भी मीडिया ने यह सवाल नहीं है उठाया कि नकली नोट नहीं छप सकतीं यह दावा पूरी तरह फेल रहा है। एक हफ्ते पहले ही गुजरात में एक करोड़ के नकली नोट पकड़े गये….दो हजार के नोटों की नकली खेप बाजार में सबसे ज्यादा है। दूसरे नंबर पर 500, तीसरे नंबर पर 100 और चौथे नंबर पर 200 रुपए के नोट हैं। नकली नोटों के मामले में उत्तर प्रदेश देश के टॉप पांच राज्यों में शामिल है। देश की राजधानी दिल्ली नकली नोटों की भी राजधानी है और पहले नंबर पर है। दूसरे नंबर पर गुजरात, तीसरे नंबर पर तमिलनाडु, चौथे नंबर पर महाराष्ट्र और पांचवें नंबर पर उत्तर प्रदेश है। कानपुर निवासी राज्यसभा सांसद चौधरी सुखराम सिंह द्वारा सदन में नकली नोटों के संबंध में पूछे गए सवालों के जवाब में ये आंकड़े दिए गए हैं।

रोजगार, छोटे मझौले उद्यमों के नष्ट होने पर, तबाह हो रहे बैंकिंग सेक्टर, विदेशी कर्ज के बढ़े हुए ग्राफ, सार्वजनिक उपक्रमों की बेचा-बांची जैसे सैकड़ों सवाल जन सरोकारों से जुड़े मुद्दे हैं, जिन पर मीडिया पूरी तरह खामोश रहा है…200 लोग नोटबंदी की लाइन में, सवा सौ किसान, पीएमसी व सिटी बैंक घोटाले में करीब 100 लोग मारे गये, मीडिया ने कोई सवाल खड़े किए थे क्या? मीडिया ने पुलवामा पर सवाल उठाए थे क्या? 28 गुजराती बैंकों का 10 खरब से अधिक रूपए डकार कर देश से निकल गये कभी किसी चैनल पर बहस देखी है क्या किसी ने? मीडिया जनसरोकारी पत्रकारिता से दूर ही नहीं हुआ है वह अब इस देश के लोकतांत्रिक मूल्यों तक को नष्ट कर रहा है और सामाजिक समरसता को खत्म कर रहा है जिसके भयावह परिणाम सभी को भुगताने होंगे….रही बात मीडिया पर हमले की तो यह अब बढ़ेगा यह मेरा अपना आंकलन है… सत्ताएं कभी किसी की नहीं हुई हैं।

मुझे अभी भी याद है जब 25-30 साल पहले मीडिया पर हमला होता था तो आम जनता मीडिया के समर्थन में खड़ी हो जाती थी…अब नहीं होती क्यों?… मीडिया को अब रक्कासा, तवायफ, दलाल, भंडुआ….जैसे शब्दों से पुकारा जाने लगा है क्यों? हम सब राजू श्रीवास्तव और कपिल शर्मा शो की खुराक कब बन गये पता ही नहीं चला….याद रखिएगा जो बोया जाएगा वहीं काटा भी जाएगा। अभी तो नेता और उनके चमचे हाथ साफ कर रहे हैं एक दिन राह चलते जनता हाथ साफ करेगी….यह होगा और इसके लिए मीडिया खुद जिम्मेदार है….कुछ माह पहले उत्तर प्रदेश के एक बड़े नेता पर ट्वीट के कारण नॉएडा व दिल्ली से पत्रकारों की गिरफ़्तारी हुई। शामली में जीआरपी के लोगों द्वारा की गई मारपीट लेकिन मीडिया खामोशी ओढ़ गया क्योंकि ये पत्रकार मीडिया के सेट एजेंडे से बाहर थे।  हम NCRB की उस रिपोर्ट से भी समझ सकते हैं जो लोकसभा में पेश हुई है। अब तक देश में पत्रकारों पर सबसे ज्यादा हमले उत्तर प्रदेश में हुए है। 2013 से लेकर अब तक उत्तर प्रदेश में पत्रकारों पर हुए हमले के सन्दर्भ में 67 केस दर्ज किया गए हैं. बात अन्य राज्यों की हो तो 50 मामलों के साथ मध्य प्रदेश दूसरे नंबर पर है /जबकि 22 मामलों के मद्देनजर बिहार नंबर 3 पर है। रिपोर्ट में यूपी को पत्रकारों के लिहाज से सबसे असुरक्षित कहा गया है और ये भी बताया गया है कि सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही 2013 से लेकर 2019  तक, 7 पत्रकार ऐसे थे जिनकी हत्या हो चुकी है। पत्रकारों पर हमलों के सन्दर्भ में जो रिपोर्ट लोकसभा में पेश हुई है उस पर खुद पत्रकारों को विचार करना होगास्वतंत्र पत्रकार प्रशांत कनौजिया की गिरफ्तारी और शामली में एक निजी चैनल के पत्रकार के साथ हुई मारपीट हमारे सामने है लेकिन आवाज नहीं उठी। 

एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार पत्रकारों पर हमले के 2014 में 63, 2015 में 1 और 2016 में 3 मामले दर्ज हैं और 2014 में 4 लोग, 2015 में शून्य और 2016 में 3 लोग गिरफ्तार किए गए. 2017 में ही आई “द इंडियन फ्रीडम रिपोर्ट” का अवलोकन करने पर मिलता है कि पूरे देश में 2017 पत्रकारों पर 46 हमले हुए। इस रिपोर्ट के अनुसार 2017 में पत्रकारों पर जितने भी हमले हुए। उनमें सबसे ज्यादा 13 हमले पुलिसवालों ने किए हैं। इसके बाद 10 हमले नेता और राजनीतिक पार्टियों के कार्यकर्ताओं और तीसरे नंबर पर 6 हमले अज्ञात अपराधियों ने किए.बात  साफ है कि एक पत्रकार का काम खबर बताना और सच को सामने लाना है। ऐसे में अगर पत्रकार ये न करते हुए दूसरों की देखा देखी सत्ता के आगे झुकेगा और सरकार की चाटुकारिता करते हुए सही को गलत करेगा तो फिर उसका यही हश्र होगा और इस तरह की खबरें हमारे सामने आती रहेंगी। फिलहाल, पत्रकारों पर हुए हमलों पर हमें वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स की बातों को भी समझना होगा. वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स-2019 के अनुसार  भारत में पत्रकारों की स्वतंत्रता और उनकी सुरक्षा दोनों ही खतरे में है। 

(पवन सिंह की फेसबुक वॉल से…..)

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