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जानिये, इस प्रकार बनायें ऊसर भूमि को खेती योग्य

कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डी.आर. सिंह द्वारा वैज्ञानिकों को जारी निर्देश के क्रम में आज अनौगी स्थित कृषि विज्ञान केंद्र के मृदा वैज्ञानिक डॉ. खलील खान ने बताया कि उसर भूमि सुधार के कार्यों को प्रारंभ करने का सबसे उत्तम समय गर्मियों के महीनों में होता है। उन्होंने बताया कि पूरे देश में लगभग 71 लाख हेक्टेयर भूमि ऊसर से प्रभावित है जबकि उत्तर प्रदेश में लगभग 13 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल ऊसर से प्रभावित है। इसके अतिरिक्त जनपद कानपुर नगर एवं देहात में लगभग 54,218 एवं जनपद कन्नौज में लगभग 20 हजार हेक्टेयर ऊसर प्रभावित एवं अकृषि क्षेत्रफल है।उन्होंने बताया कि ऊसर भूमियों में जिप्सम फैलाने के तुरंत बाद कल्टीवेटर या देशी हल से भूमि के ऊपरी 7-8 सेंटीमीटर की सतह में जिप्सम को मिलाकर खेत में समतल करके मेड़बंदी करना जरूरी होता है, ताकि खेत में सब जगह पानी बराबर लग सके।

डॉ. खलील खान ने बताया कि जिप्सम को मृदा में अधिक गहराई तक नहीं मिलाना चाहिए। धान की फसल में जिप्सम की आवश्यक मात्रा (50 से 60 कुंतल प्रति एकड़) को फसल लगाने से 10 से 15 दिन पहले खेत में डालना चाहिए। पहले चार से पांच सेंटीमीटर हल्का पानी लगाना चाहिए जब पानी थोड़ा सूख जाए तो पुनः 12 से 15 सेंटीमीटर पानी भरकर रिसाव क्रिया संपन्न करनी चाहिए। डॉक्टर खान ने बताया कि उषर भूमियों में जिप्सम को बार-बार मिलाने की आवश्यकता नहीं होती है। उन्होंने बताया कि शोधो द्वारा पाया गया है कि धान को ऊसर भूमियों में लगातार उगाते रहे तो मृदा के ऊसरपन में कमी आती है। उन्होंने किसानों से कहा कि कभी भी खेतों को लंबी अवधि तक खाली नहीं छोड़ना चाहिए।

केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. वी.के. कनौजिया ने बताया की ऊसर मृदा में उपस्थित सोडियम की अधिक मात्रा से मृदा का पीएच मान बढ़ जाता है जिसके कारण पानी व हवा का रिसाव कम होता है तथा मिट्टी की भौतिक दशा बिगड़ जाती है। इन भूमियों में नाइट्रोजन, कैल्शियम तथा जिंक की भारी कमी हो जाती है। जिससे फसल उत्पादन लाभदायक नहीं हो पाता है डॉक्टर कनौजिया ने बताया कि फसलों के पोषक तत्वों की मांग केवल जिप्सम डालकर पूरा करना असंभव है। क्योंकि इसमें केवल कैल्शियम, गंधक प्राप्त किए जा सकते हैं। इसलिए रासायनिक उर्वरकों एवं हरी खाद के साथ जिप्सम का प्रयोग करके भूमियों में अच्छी उपज प्राप्त की जा सकती है।मृदा वैज्ञानिक एवं विश्वविद्यालय के मीडिया प्रभारी डॉक्टर खलील खान ने बताया कि ऊसर भूमियों में अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए धान की ऊंसर सहनशील प्रजातियों को ही उगाना चाहिए। सीएसआर 13, सीएसआर 27, सीएसआर 36 एवं बासमती सीएसआर 30 उपयुक्त ऊंसर धान की प्रमुख प्रजातियां हैं।

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