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नीति आयोग द्वारा प्राकृतिक खेती पर कार्यशाला का हुआ आयोजन

कानपुर। आईसीएआर अटारी जोन 3 कानपुर के निदेशक डॉ. अतर सिंह ने बताया कि मंगलवार को नीति आयोग के द्वारा आजादी के अमृत महोत्सव के अन्तर्गत प्राकृतिक खेती विषय पर पर कार्यशाला का आयोजन किया गया।

कार्यशाला में मुख्य अतिथि राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने प्राकृतिक खेती पर अपने अनुभव साझा किये। उन्होंने बताया कि वे स्वयं एक किसान भी हैं और उनके द्वारा कई वर्षों से रासायनिक खेती छोड़कर प्राकृतिक खेती की जाती है। राज्यपाल ने बताया कि पहले ही वर्ष मुझे प्राकृतिक खेती से उतना लाभ मिल गया। जितना रासायनिक खेती से मिलता था। भारत सरकार पिछले 20-30 वर्षों से जैविक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में प्रयास कर रही है। कोविड-19 जैसी बीमारी से वही बचने में सक्षम हो पायेगा। जिसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होगी और प्रतिरोधक क्षमता उसी में अधिक होगी जो प्राकृतिक खेती से उगे उत्पादों का सेवन करता होगा। आज से 60-70 वर्ष पूर्व लोगों में रोग काफी कम होते थे क्योंकि रासायनिक खेती बहुत कम थी, खेती में रासायनों के प्रयोग के बढ़ने के साथ ही लोगों में हृदय संबंधी रोग, शुगर, बीपी, कैन्सर एवं अन्य नई-नई बीमारियां तेजी से सामने आने लगीं। प्राकृतिक खेती के उत्पादों की विदेशों में भी मांग होती है और उन्हें निर्यात करके अच्छी कीमत प्राप्त की जा सकती है वहीं अधिक रासायनों के प्रयोग से उपजे उत्पादों को विदेश निर्यात नहीं किया जा सकता। उन्होंने बताया कि हिमाचल प्रदेश में राज्यपाल रहते हुए उनके द्वारा प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिये 2 वर्ष कार्य किया गया। 50 हजार किसानों ने इस खेती को अपनाया और वर्तमान में 1 लाख 35 हजार किसान प्राकृतिक खेती को अपना चुके हैं। हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती अपनाने से किसानों की आय 27 प्रतिशत तक बढ़ी एवं लागत में 56 प्रतिशत की कमी आई। उन्होंने बताया कि किसान का सबसे अच्छा मित्र केंचुआ होता है। मल्चिंग से धरती में खरपतवार पैदा नहीं होता, नमी बनी रहती है एवं पानी की 50 प्रतिशत तक खपत कम हो जाती है।

नीति आयोग के उपाध्यक्ष डॉ. राजीव कुमार जी ने कहा कि हम लग कई वर्षों से प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिये प्रयासरत हैं। यदि हमें किसानों की आय दोगुनी करना है, उनकी लागत को कम करना है, स्वास्थ्य का ध्यान रखना है तो इसके लिये रसायन मुक्त खेती आवश्यक है। 90 प्रतिशत देश का पानी कृषि क्षेत्र में इस्तेमाल होता है और 70 प्रतिशत पानी भूमिगत जल के रूप में प्राप्त होता है। प्राकृतिक खेती द्वारा हम वातावरण का कार्बन जमीन में वापस लाते हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार जमीन में कार्बन का प्रतिशत 2.5 प्रतिशत था जो कि घटकर अब 0.4 प्रतिशत हो गया है। अच्छी कृषि के लिये कम से कम 1.5 प्रतिशत कार्बन का प्रतिशत जमीन में होना आवश्यक है। प्राकृतिक खेती के द्वारा उपज के उपभोग से लोगों के स्वास्थ्य पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है, अच्छे स्वास्थ्य और रोगमुक्त रहने के लिये लिये प्राकृतिक खेती की उपज का उपभोग आवश्यक है। प्राकृतिक खेती से उपज कम नहीं होती और प्राकृतिक खेती के उत्पादों से किसानों की आय बढ़ती है। 86 प्रतिशत किसान आज 2 है0 से कम जमीन पर खेती करते हैं उनके लिये प्राकृतिक खेती काफी महत्वपूर्ण है, प्राकृतिक खेती के द्वारा ही वे अपनी आमदनी बढ़ा सकते हैं। उन्होंने कहा कि आज कृषि विज्ञान केन्द्रों, राज्य कृषि विश्वविद्यालयों और कृषि वैज्ञानिकों का दायित्व है कि वे प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दें और इस खेती को किसानों तक पहुँचाने में पहल करें।
कार्यशाला में 930 से अधिक प्रतिभागी, पूरे देश से कृषि विज्ञान केन्द्र, राज्य कृषि विवि. के वैज्ञानिक, भाकृअनुप संस्थानों के निदेशक एवं वैज्ञानिक, किसान एवं शोधार्थी आनलाइन माध्यम से कार्यशाला में आनलाइन जुड़े।

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