कानपुर। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रसार निदेशालय द्वारा विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर डी.आर. सिंह के कुशल मार्गदर्शन में बुधवार को प्राकृतिक खेती की आवश्यकताएं, संभावनाएं एवं रणनीति विषय पर ऑनलाइन कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला के उद्घाटन अवसर पर निदेशक शोध डॉ एच जी प्रकाश ने कहा कि प्राकृतिक खेती का महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने कहा कि इस तरह की खेती में कीटनाशक एवं रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं होता है। बल्कि इस प्रकार की खेती पूरी तरह प्राकृतिक संसाधनों पर आश्रित है। रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशको के प्रयोग से मृदा की उर्वरता कम तथा प्रदूषित हो रही है तथा वातावरण में परिवर्तन हो रहा है।
इस अवसर पर निदेशक प्रसार/समन्वयक डॉ एके सिंह ने बताया कि प्राकृतिक खेती में रासायनिक खाद की जगह भूमि की प्राकृतिक उर्वरा शक्ति को बढ़ावा देने पर जोर दिया जाता है। इसमें रासायनिक उर्वरकों के विकल्प के तौर पर जीवामृत का इस्तेमाल किया जाता है। इसे देसी गाय के गोबर, गोमूत्र, गुड़ बेसन, पानी और मिट्टी का किण्वित माइक्रोवीएल मिश्रण से बनाया जाता है। यह सभी स्थानीय स्तर पर उपलब्ध होते हैं और किसान को बाजार से कुछ खरीदने की आवश्यकता नहीं होती है। उन्होंने बताया कि यह जैविक मिश्रण खेत की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के साथ-साथ सूचहम जीवो और केंचुआ को सक्रिय कर खेतों में होने वाली जैविक प्रक्रियाओं को बढ़ावा देता है। इस कार्यक्रम में विभिन्न जनपदों के कृषकों ने अपने अनुभव साझा किए। जिसमें सुभाष पालेकर के कार्यों की संस्तुतियां किसानों द्वारा की गई। निदेशक प्रसार ने बताया कि विश्वविद्यालय द्वारा प्राकृतिक खेती पर शोध एवं मूल्यांकन कार्य किया जा रहा है।जिसकी संस्तुतियों आगामी दो-तीन वर्षों में किसानों के खेतों तक कुलपति के कुशल नेतृत्व में पहुंचाने का कार्य किया जाएगा। उन्होंने बताया कि केवीके के प्रक्षेत्रों पर भी एक एकड़ क्षेत्रफल में प्राकृतिक खेती का मूल्यांकन किया जा रहा है। इस कार्यक्रम का संचालन डॉ जितेंद्र सिंह ने किया जबकि धन्यवाद सह निदेशक प्रसार डॉ पीके राठी ने किया। इस कार्यक्रम में सभी कृषि विज्ञान केंद्रों के अध्यक्ष/वैज्ञानिक तथा विभिन्न जनपदों के किसानों सहित लगभग एक सैकड़ा लोगों ने ऑनलाइन प्रतिभा किया है।