महाशिवरात्रि भगवान शिव का पावन पर्व है। हर साल यह त्योहार फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस बार यह पावन पर्व 11 मार्च गुरुवार को मनाया जा रहा है। जो कि 12 मार्च सुबह 8: 29 बजे तक रहेगा। हिंदू पंचांग के अनुसार जब शिवरात्रि त्रिस्पृशा अर्थात त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या के स्पर्श से युक्त होती है, तो उस शिवरात्रि को सबसे उत्तम शिवरात्रि मानी जाती है| इस बार की महाशिवरात्रि के दिन अर्थात 11 मार्च को प्रात:काल त्रयोदशी और दोपहर 2.39 के पश्चात चतुर्दशी तिथि है। शिव योग में किए गए सभी मंत्र शुभफलदायक होते हैं।
क्यों मनाई जाती है महाशिवरात्रि
पौराणिक कथाओं के मुताबिक महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसी दिन पहली बार शिवलिंग की भगवान विष्णु और ब्रह्माजी ने पूजा था।
दूसरी प्रचलित कथा के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का विवाह माता पार्वती के साथ हुआ था। इसलिए इस दिन उनके विवाह का उत्सव मनाया जाता है। नेपाल में महाशिवरात्रि के तीन दिन पहले से ही मंदिरों को मंडप की तरह सजाया जाता है. मां पार्वती और शिव जी को दूल्हा-दुल्हन बनाकर घर-घर घुमाया जाता है और महाशिवरात्रि के दिन उनका विवाह कराया जाता है. इसी कथा के चलते माना जाता है कि कुवांरी कन्याओं द्वारा महाशिवरात्रि का व्रत रखने से शादी का संयोग जल्दी बनता है।
तीसरी प्रचलित कथा के मुताबिक भगवान शिव द्वारा विष पीकर पूरे संसार को इससे बचाने की घटना के उपलक्ष में महाशिवरात्रि मनाई जाती है। दरअसल, सागर मंथन के दौरान जब अमृत के लिए देवताओं और राक्षसों के बीच युद्ध चल रहा था, तब अमृत से पहले सागर से कालकूट नाम का विष निकला। ये विष इतना खतरनाक था कि इससे पूरा ब्रह्मांड नष्ट किया जा सकता था। लेकिन इसे सिर्फ भगवान शिव ही नष्ट कर सकते थे। तब भगवान शिव ने कालकूट नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। इससे उनका कंठ (गला) नीला हो गया. इस घटना के बाद से भगवान शिव का नाम नीलकंठ पड़ा।
महाशिवरात्रि व्रत
यह व्रत सभी वर्णो की स्त्री- पुरुष और बाल, युवा, वृद्ध के लिए मान्य है। शिवरात्रि व्रत सब पापों का शमन करने वाला है। इससे सदा सर्वदा भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है। शिव पूजन में स्नान के उपरान्त शिवलिंग का अभिषेक जल, दूध, दही, घृत, मधु, शर्करा (पंचामृत) गन्ने का रस, चन्दन, अक्षत, पुष्पमाला, बिल्व पत्र, भांग, धतूरा इत्यादि द्रव्यों से अभिशेक विशेश मनोकामनापूर्ति हेतु किया जाता है एवं ”ऊँ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करना चाहिए। शिवरात्रि में प्रातः एवं रात्रि में चार प्रहर की शिव पूजन का विशेष महत्व है।